Friday, December 6, 2019

जज की जरूरत।

एक भेड़िया धंसान वाले मुल्क में।
अंग्रेजी हुकूमत के दौरान बनी
गोल मेहराब और ऊंची छत वाली इमारत में
जिसमें लंबी लटकी पाइप से।
चौड़ी पत्तियों वाला पंखा घूम रहा है।
उसी समय के साथ।
समय गुजरता रहा है।
पंखा चलता रहा।
समय पता नहीं कहां गया।
पंखा वही का वही है।
चलते चलते भी रुका हुआ पंखा 
एक रोज देखता है कि
उस साखू की कुर्सी पर 
वही रोज वाला व्यक्ति
कोई काला सा लबादा ओढ़े हुए बैठ जाता है
रोज की तरह
बैठ जाता है वो उसी आत्मविश्वास के साथ कि
आज फिर वो भी वो कर देगा
दूध का दूध और पानी का पानी।
रोज की तरह
उसे विश्वास है खुद पर
उसे विश्वास है उन सभी संभावित बहसों पर
दलीलों पर और गवाहों पर।
जिन्हें सुन कर,देख कर,महसूस कर
वो कर देगा दूध का दूध और पानी का पानी
और बन्द आँखों के बावजूद भी 
उस तराजू के दोनों पलड़े रहेंगे बराबर।
हमेशा की तरह।
पंखा चलते हुए ये सोच ही रहा था कि
तभी बाहर से आवाज आई।
शोर की,नारों की,ज़िंदाबाद की।
ढोल पिटे जा रहे थें।
उस कर्कश आवाज में पंखे की आवाज खो सी गई।
वो लबादा ओढ़े हुए आदमी पूछता है
क्या हुआ बाहर?
बाहर से आवाज आती है।
इंसाफ हुआ है।
बहुत तेज।
समय के रफ्तार से भी तेज।
फैसला हो चुका था।
उसी भेड़िया धंसान वाले में मुल्क में
लोग खुश थे,उछल रहे थे।
तालियां बजा रहे थें।
इतना ज्यादा,इतना ज्यादा।
इतना ज्यादा की उतना ज्यादा तो।
दुःखी भी नहीं थे उस अपराध के 
हो जाने से.....।
इंसाफ जो हो चुका था।
इंसाफ जो साफ था जनता की नजर में।
ये सोच कर वो लबादा ओढ़े व्यक्ति
बैठा रहा उसी साखू की कुर्सी पर।
सोचता रहा अपनी अनिवार्यता के बारे में।
कि मैं जरूरी हूँ या नहीं?
और बीतते वक़्त के साथ
पंखा ये भी देख रहा है।
और सोच रहा है कि
अब न्यायालय का सम्मान 
सिर्फ हॉर्न नहीं बजाने में ही होगा।
इस भेड़िया धंसान वाले मुल्क में।

मनीष यादव।




Friday, July 28, 2017

नीतीश ने तीर से क्या निशाना लगाया?

क्या नोटबन्दी हो या राष्ट्रपति चुनाव ।
इन दोनों मुद्दों पर नीतीश ने केंद्र का साथ दिया । इसका फायदा यह हुआ कि नीतीश प्रदेश के बाहर पूरे देश में मोदी के समकक्ष खड़े होने की पूरी कोशिश की जिसमें वो कामयाब भी हुए ।
क्योंकि वो केंद्र से अदावत करते हुए कभी भी केजरीवाल टाइप नहीं बनना चाहते थे । वो नहीं चाहते थे की दिल्ली किसी भी तरह उनके सूबे की तरक्की या यूं कहें कि कोई भी रोड़ा न बने....
लेकिन इसीबीच इस देश में विपक्ष के पूरी कोशिश के बाद भी सिर्फ दो ही व्यक्ति थे जो खासकर मोदी को फोकस कर के एनडीए या उनकी नीतियों का विरोध करते थे ।
एक दिल्ली के सीएम अरविंद और दूसरे लालू प्रसाद यादव ।
केजरीवाल सरकार को इस विरोध की कई कीमत चुकानी भी पड़ी है लेकिन इसका फायदा यह हुआ कि उनकी पार्टी दिल्ली के अलावा पंजाब में मुख्य विपक्ष है तो दिल्ली एमसीडी में भी वो शून्य से दूसरे नम्बर पर पहुंची है । जोकी किसी भी नई राजनीति पार्टी की अच्छी शुरुआत मानी जानी चाहिए तब जब आप पर कई आरोप लग भी रहे हो...
अब बाद दूसरे व्यक्ति लालू प्रसाद यादव की जो अपने स्टाइल राजनीतिक तौर तरीकों से खासकर मोदी विरोध का झंडा उठाये हुए थे । इन सब में आपको अगले चुनाव में पीएम उमीदवार के बारे में सोचते रहना होगा....जिसका जिक्र आगे किया जाएगा ।
तो बात लालू की जोकि 27 अगस्त को गांधी मैदान पटना में केंद्र और भाजपा के खिलाफ रैली करने वाले हैं । ये तो तय था कि अगर महंगठबंधन बरकरार भी रहता तो नीतीश उसमे हिस्सा नहीं लेते । उसकी वजह यह है कि वो नहीं चाहते कि 2019 के लिए उन्हें अभी से तैयार बताया जाने लगे और उसका राजनैतिक प्रभाव उनके राज्य पर पड़े और 2019 आते आते वो बिहार को लेकर ही इतने बदनाम हो जाये कि पूरा देश उनपर भरोसा करने में हिचकिचाने लगे ।
लिहाजा उन्होंने बहुत हल्के मामले में नैतिकता और अन्तरात्मा के बेस पर अपनी कुर्सी छोड़ दी है वो पूरे देश मे अपनी ईमानदार छवि बनाने में कामयाब हो गए....
इस नई सरकार से नीतीश को यह फायदा होगा कि अब वो कम से कम 2019 तक बीजेपी के आरोपों से बच गए । और ये भी हो सकता है कि फिर उसवक्त अन्तरात्मा की फिर आवाज आ जाये और नीतीश फिर इस्तीफा दे और नई जिम्मेदारी के अगुवा बन जाएं ।
क्योंकि नीतीश अब सिर्फ परसेप्शन की पॉलिटिक्स कर रहे है और वो जनता को मात्र एक दर्शक समझ लिए हैंजोकी आपके कारनामें पर तालियां बजाती है और सीटियां मारती है ।
इस नए गठबंधन से नीतीश ने बिहार को ही अपनी अगली  सियासी बिसात बना दी जिसमें उन्होंने उसी को अपना साझेदार बना दिया है जो आने वाले कल में उनका आलोचक बनेगा....लेकिन अब उस आलोचना के तलवार की धार को नीतीश ने कुंद कर दिया है ।
कहाँ जाता है कि सियासत में कुछ भी स्थाई नहीं होता....लेकिन बड़ा सवाल ये है कि नीतीश बाद अब अगला शपथ ग्रहण किसका होगा..? वो भी इस कार्यकाल में...?

Wednesday, April 13, 2016

एक बहुत पुराना पेशेवर मास्टर




द्रोणाचार्य एक ऐसे महान गुरु थे जिन्होंने एक ऐसे छात्र से सिर्फ इस वजह से उसका दाहिना अंगूठा मांग लिया जिससे की इनके चेले को धनुर्विद्या में कोई हरा न सके।
और वो छात्र जिससे इन्होंने दाहिना अंगूठा माँगा था उसको इन्होंने सिखाने से भी मना कर दिया था, जिसके बाद एकलव्य ने द्रोणाचार्य को अपना गुरु मनोनीत किया था और उनकी प्रतिमा बना कर अभ्यास किया करता था ।
और मात्र उसी एवज में एकलव्य ने हस्ते हस्ते अपना अंगूठा काट कर द्रोणाचार्य के चरणों में रख दिया था ।
लेकिन आज विडम्बना देखिये इस आज्ञाकारी छात्र को आज कोई याद नहीं कर रहा और इस खुदगर्ज, लालची गुरु के नाम पर शहर बसाये जा रहे हैं ।
गुड़गांव के साथ अब एक मतलबी मास्टर का नाम जुड़ गया गुरुग्राम ।




वजनदारों का वजन घटा मतलब खबर भारी है

पहली तस्वीर में अनंत अम्बानी है जिन्होंने 18 महीने 108 किलो वजन किया है वो भी हार्ड वर्क करने के बाद...दूसरी तस्वीर को आप सुखिया,दुखिया,पन्नालाल किसी भी किसान के बेटे के रूप में मान लीजिये...इनका वेट भी बहुत लॉस हुआ बगैर किसी हार्ड वर्क के..
इन्होंने अपना वजन घटाने के लिए कुछ नहीं किया...कुदरत ने पानी नहीं गिराया, बाप के फसलों का अच्छा दाम नहीं मिला, साहूकार ने जमीन कब्जा ली
और एक झटके में वजन कम हो गया।
लेकिन अफ़सोस खबर नहीं बनी।
सलमान से लेकर धोनी तक सेल्फ़ी लेने नहीं आये ।
और हा
फॉरगेट मनी





कहां है १०० करोड़ वाला कुनबा ?

महाराष्ट्र सरकार ने लातूर के लिए 5 लाख लीटर से भरी पानी एक्सप्रेस रवाना किया ।
स्वागत होना चाहिए ।
लेकिन इस राज्य का वो 100 करोड़ क्लब वाला कुनबा क्या कर रहा है ?
जो सारे राष्ट्र से 100 रूपये की टिकट के बदले इस 100 करोड़ वाले क्लब में शामिल होता है ।
कहाँ है अनुपम खेर,सलमान खान,आमिर खान,ऋतिक रोशन , सचिन तेंदुलकर ,कपूर और समस्त बच्चन परिवार जैसे लोग...
ऋषि कपूर क्या सिर्फ लिकर पर ट्विटर पर ज्ञान झोकेंगे की वाटर पर भी कुछ सुझाव सरकार को देंगे...
या फिर सारा पैसा और भक्ति लालबाग वाले राजा पर ही खर्च होगा ?
राष्ट्र की कुछ कमाई तो अपने महाराष्ट्र भलाई के लिए लगाना चाहिए ।



Tuesday, September 29, 2015

आखिर कैसा हो गांव सरकार का आधार ?

भारत गांवों का देश है, ऐसे अगर गांव का विकास नहीं हो पा रहा है तो असल
में हम भारत का विकास करने में चूक रहे हैं , क्योकि याद रखना होगा कि
हमने जो विकास का पैमान रखा है वो सिर्फ एलईडी लाईट, फोरलेन सड़कें ,
ऊंची-ऊंची इमारतें और वाई फाई जैसी हाईफाई सुविधाओं के ही इर्द गिर्द है।
हालांकि यह विकास नहीं है यह कहना बेमानी हो जाता है लेकिन इस प्रकार का
हर विकास भारत में नहीं बल्कि इंडिया में हो रहा है । गांव के बिना हम
किसी भी शहर की कल्पना नहीं कर सकते । और गांवों की भी अपनी सरकार होती
है जिसमें ग्राम से लेकर पंचायतें तक आती है, असलियत में देखे तो इस
चुनावों में ही गांवों के भविष्य की इबारत लिखी जाती है । किसी भी गांव
के विकास के लिए यह ये स्थानीय चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाते है
क्योंकि स्थानीय स्तर के जितने भी प्रतिनिधि होते है वो अपनी गांव की
समस्या से ज्यादा वाकिफ होते हैं वनस्पत विधायक,सांसदों के..
ऐसे में गांव की सरकार का आकार कैसा हो ? मुद्दा क्या हो ?  और मुद्दों
के बीच अंतर कैसे स्पष्ट हो ? यह जानना जरूरी हो जाता है ।  अमूमन यह
देखा जाता है कि चुनाव किसी भी स्तर का हो मुद्दा एक ही प्रकार का होता
है,बिजली,पानी,सड़क,खाद,सफाई हर स्तर पर गांव वालों के बीच में एक ही
मुद्दा होता है । ऐसे में गांव वालों को यह सोचना होगा कि इस सभी
समस्याओं में पंचायत या ग्राम सभा का शेयर कितना है , और वो कौन सा
प्रत्याशी इसे दूर कर सकता है या करने का दावा कर रहा है । पंचायत के
सारे चुनाव स्थानीय मुद्दे के अलावा भावात्मक रूप से भी लड़े जाते हैं
ऐसे में भी गांवों का विकास कैसे हो , बात मीड-डे-मील कि हो, गांव में
सफाई की हो , मनरेगा स्कीम की हो या फिर आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं
के कामों की  समीक्षा हो , कुपोषण हो या शिशु मृत्यु दर हो या फिर मातृ
मृत्यु दर, सारक्षरता हो या फिर लैंगिग अनुपात का मुद्दा, किसी भी
स्वास्थ्य, शिक्षा , रोजगार हर मामले में अगर गांवों में कोई सरकारी
गतिविधि होती है तो सरकार के साथ ही साथ गांव सरकार की भी एक अहम भूमिका
होती है । और अगर गांव की सरकार अगर जरा सी संवेदनशीलता और गंभीरता
दिखाती है तो गांव का विकास होने से कोई नहीं रोक सकता है । तो इसलिए इस
गांवों के वोटरों को अब जागरूक होने की जरूरत है उनको चाहिए वो स्थानीय
स्तर के ऐसे अहम चुनाव में सिर्फ रिश्तों और भावात्मकता के आधार पर ही
वोट न करें…
अब गांव की सरकार भी विकास,विजन और एजेंडा के पैमाने पर ही बननी चाहिए
तभी गांवों का विकास हो पाएगा , क्योकि गांवों का विकास ही भारत के विकास
की कुंजी है ।

Friday, September 25, 2015

बिहार चुनाव: अबकी बार क्रिएटिव वॉर

बिहार में चुनावी संग्राम अपने चरम पर है, और यह चुनाव यकीनन सारे देश के नजर में भी है। एक तरह से हम कह सकते हैं कि यह चुनाव यह भी बताएगा कि देश में मोदी मैजिक अभी भी चल रहा है या नहीं, यह बताने की जरूरत नहीं कि लोकसभा के जनरल इलेक्शन के बाद नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति के 'बालि' बनकर उभरे । और जो इस बालि से लड़ने आता था उसका आधा बल मोदी के हर लेते थे और सामने वाला हार जाता था । लेकिन यह तभी तभी हुआ कश्मीर को छोड़कर जब मोदी सीधे-सीधे अपने विरोधियों से लड़े हैं। क्योंकि दिल्ली के मामले मोदी ने अपना चेहरा हटा लिया और पूरे देश में चल रहा मोदी का विजय रथ पर केजरीवाल ने ब्रेक लगा दिया । लेकिन बिहार विधानसभा में लोकसभा के सभी चुनावों से भिन्न है । क्योंकि मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़,राजस्थान, को छोड़ दें तो हरियाणा और झारखंड की जीत ही भारतीय जनता पार्टी को बताया कि पूरे देश में मोदी मैजिक की लहर चल रही है । लगतार जीत , बीजेपी की दिल्ली में चेहरा उतारने की चूक और फिर अब पूराने तरीके से फिर बिहार में जीत का दांव खेल रही मोदी जनता पार्टी भले ही अपने जीत के लिए आश्वस्त हो लेकिन बिहार में मोदी की पूरी टीम संशय में तो जरूर है और उसकी वजह है कि यहां के प्रैक्टिकल वोटर ।
आम तौर पर उत्तर-प्रदेश और बिहार के लोगों की राजनीतिक समझ और हिस्सेदारी बगैर किसी इंट्रेस्ट के ही और प्रदेश के लोगों की तुलना में ज्यादा होती है औऱ यही वजह है कि बीजेपी इस बार इस शो हिट कराने के लिए पूरी कोशिश में है तो वही नितीश बाबू अपने अपने द्वारा किए गए काम, बिहार की बदली हुई छवि के आधार पर लोगों के बीच में हैं । लेकिन इनसब के बीच इस इलेक्शन में कैसा हो सलेक्शन यह बताने के लिए क्रिएटिव प्रोसेस ने भी लोगों के बीच कदम रखा है । क्रिएटिव प्रोसेस का मतलब अगर हम पोस्टर से लेकर ट्विटर तक हर तरह के प्रयोग । राजनीतिक पार्टी अब इस चुनाव में लोगों दिमाग में नहीं दिल में घुसना चाह रही है । जिसमें सिर्फ मार्केंटिंग है , जनता की बातें ना के बराबर है, जिसका पोस्टर अच्छा है, जिसका ट्वीटर लगातार अपडेट हो रहा है वही ऐसे चुनाव में जीत रहा है । और इसी का नतीजा है कि नीतिश ने भी इसवक्त की लड़ाई के मूड को भांप लिया है और वो भी विरोधियों को वैसे ही हथियारों से जवाब देने के मूड में आ गए है । दिल्ली से जेटली के बयान पर 20 पेज का ट्वीटर पर जवाब दे देतें है । वो उस ऐतिहासिक पैकेज की राशि और उसके आंकड़े कितने फर्जी है यह बताने के लिए बकायदा डाक्यूमेंटेशन करके उसको फेसबुक पर शेयर करते हैं , और तो नारे और हवा बनाने के लिए उन्होंने उसी प्रशांत कुमार मोदी को हायर किया है जिन्होंने लोकसभा के दौरान नरेंद्र मोदी के नारे गढ़े थे और  उनकी ब्राडिंग की थी । इस चुनाव में प्रशांत सिटिजन फॉर एकांउटेबल गवर्नेंस के प्रमुख कार्यकर्ता के तौर पर बिहार में नीतीश के लिए हवा बनाएंगे। प्रशांत बिहार में होनेवाले चुनाव में नीतीश के पक्ष में नए नारे गढ़ेंगे और अन्य जनसंपर्क कार्यक्रम भी चलाएंगे।  उनको डेटा एनालिटिक्स, ब्रॉडिंग और कम्युनिकेशन का मास्टर कहा जाता है । खैर इस चुनाव में नीतिश जीते या फिर मोदी लेकिन चुनाव के तरीके ने यह जरूर बता दिया है कि अब डिजिटल वोटर ही आपको हरा या जीता सकता है । शायह यही वजह से इस टेक्नो फ्रेंडली हो चुनावों के इस माहौल में एक पार्टी पूरे देश में ज्यादा वोट पाने में तो तीसरे स्थान पर रहती है लेकिन सीट एक भी नहीं जीत पाती है ।
                      
लोकसभा चुनाव 2014 में बहुजन समाज पार्टी ने कुल 4.2 फिसदी वोटर शेयर के साथ करीब 2 करोड़ वोट हासिल किए थे फिर भी इस पार्टी को सीट एक भी नहीं मिली थी, बगैर वोट प्रतिशत में गिरावट के ..लेकिन सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि  इस पार्टी के वोटर, ट्विटर और पोस्टर और पब्लिसिटी के इस क्रिएटीव वॉर में कभी विश्वास नहीं रखते । ये देश भर के 2 करोड़ लोग जो अब बढ़ भी गए होंगे वो विचारधारा के वोटर हैं, विचारधारा के कार्यकर्ता हैं । लेकिन इनका प्रतिनिधि एक भी जीत पात इस क्रिएटिव वार में । अब देखना है कि इस बिहार चुनाव के इस क्रिएटिव वॉर में कौन जीतता है ? विकास, नारा, जुमला,वादा, विचाराधारा,ट्विटर,फेसबुक आखिर कौन ?