Sunday, August 7, 2011

फ्रेंडशिप डे के साइड इफ्फेक्ट ........

मेरे ब्लॉग पर एक बार फिर आपका स्वागत है....

और मेरा भी मेरे ब्लॉग पर स्वागत है.....

क्या है न की मै खुद एक लम्बे अन्तराल के बाद आज आपलोगों से मुखातिब हो रहा हूँ........

इसकी वजह कुछ खास तो नही बस यह मान लीजिये की माहौल कुछ अनुकूल हो गया ...

जिसने हमको लिखने को मजबूर कर दिया ...

पहली वजह यह है की आज रविवार है. जिससे की मेरे पास वक़्त है .औए दूसरी वजह की मेरे पास सब्जेक्ट है जिस पर की बिना कोई दबाव लिखा जा सकता है...

आज जब मै सुबह जगा तो देखा की मेरे मोबाईल पर रोज की तुलना में कुछ ज्यादा ही संदेश आये है.उनमे से कुछ ऐसे भी थे जिनके संदेश रोज ही आते थे और कुछ ऐसे भी जिनकी याद हमको भी आज ही आई जैसे की उनको हमारी याद संदेश भेजते वक़्त जब लोगो को एक साथ फोनबुक से मार्क किया होगा तब आई होगी.

वैसे उन्स्बके संदेश में एक समानता थी जो उनकी और हमारी मित्रता की और इशारा करती थी...

और मै ये जान चूका था की कितने लोगो को मेरी ख़ुशी में ही उनकी ख़ुशी दिखाई देती है....

ये सोचे बगैर की ये औपचारिकता का रायता कितना फ़ैल चूका है सुबह..सुबह ..

वैसे तो वो लोग जो हमको रोज संदेश भेजते थे रोज उनके संदेशो में फुल, गुलाब, कांटे,खुदा , जैसे शब्द होते थे जिनका अर्थ अंत में यही निकलता था की दुनिया की सारी ख़ुशी हमको ही मिल जाये भले ही वो लोग झुनझुना बजाते रहे ....

लेकिन आज उन लोगो ने भी हमको लोग सबकी तरह अंग्रेजी के संदेश किया था जिसमे वाकई कठिन शब्दों का प्रयोग हुआ था लेकिन सबके अंत में हैप्पी फ्रेंडशिप डे लिखा होने के कारण उन सभी संदेशो का सारगर्भित अर्थ समझ में आ गया ..

फिर मैंने सोचा की आज फ्रेंडशिप डे के बारे में ही जाने की कोशिश करते है...

फिर मैंने इसके बारे में इंटरनेट पर खोजना शुरू किया तो वहा भी अंग्रेजी में बहुत कुछ था लेकिन हमको जितना समझ में आया वो वो है की हर काम की तरह इस काम की शुरुवात में भी अमेरिका ने बाजी मारी

अर्थार्थ सर्वप्रथम यूनाइटेड स्टेट कांग्रेस ने १९३५ ये निश्चय किया की वो अगस्त के प्रथम रविवार को फ्रेंडशिप डे मनाएगी .....हाला की यह भी कहा गया है की इसकी शुरुवात सर्वप्रथम जोएक हॉल ने की १९१९ में की जो हॉल मार्क मानक ग्रीटिंग कार्ड नामक कम्पनी के संस्थापक थे...

और भी चीजो का अनुवाद करने पर हमको पता चला की यह उस वक़्त की पाश्चात्य सभ्यता में लोगो का एक दुसरे पर असीम विश्वास औए एक दुसरे से प्रेम जताने के लिए भी इस दिवस को बनाया गया...

और उसके बारे में नीचे कुछ पवित्र बाइबिल की पंक्तिया भी लिखी थी...

मांगो तुम्हे मिल जायेगा ...

खोजो तुम्हे प्राप्त हो जायेगा....

खटखटआओ तुम्हारे लिए खोल दिया जायेगा....

ये था फ्रेंडशिप डे का मूल स्वरूप ...

अब बारी आती है हमारे देश की ..

चुकी हमारा देश नमक जैसा है जो किसी भी सभ्यता .रहन ,सहन जैसे द्रव में आसानी से घुल मिल जाता है ...

बात चाहे फ्रेंड शिप डे की हो या वेन्ल्तैन डे की.....

नतीजन भारत में भी यह मनाया जाने लगा....

चुकी शुरू में यही सोच रही होगी जो अमेरिका थी मतलब की परस्पर मेल जोल...

फिर मै जब इतना कुछ जान कर सडक पर निकला तो देखा की यहा फ्रेंड शिप बैंड भी एक दुसरे को दिया जाता है ...

फिर मैंने लोगो की कलाईयों को निहारने लगा की किसके पास कितना बैंड है....

तो मैंने देखा की जिन लडको की जींस कमर के बिलकुल निचले हिस्से पर टिकी थी, और जिसने अपने बाल और दाढ़ी पर बहुत ज्यादा प्रयोग किया था और जिनका चश्मा काम और नाक के बजाये कहीऔर टिका हुवा था ...

उनके हाथो में फ्रेंड शिप बैंड बहुत देखे गये....

लेकिन जिनलोगो ने अपनी जींस को एकदम उचित स्थानों पर टिका कर उसको बेल्ट से बांध भी लिया था, जिसने अपने बालो और दाढ़ी को उसके मूल स्वरूप में रखा था , और अगर चस्मा था भी तो होने का उचित कारण और टिकाने का वैधानिक स्थान था.

लेकिन ऐसे लोगो के हाथ इस फ्रेंड शिप बैंड से की तंगी से जूझ रहे रहे थे जैसे की आज कल फ्रेंड शिप डे का जन्मदाता अम्रीका जूझ रहा है...

अब सवाल यह उठता है की क्या ऐसे लोगो का सच में कोई मित्र नही होगा..? और होंगे भी तो वो सुचना के किस संसार में जी रहे है की उनको पता नही है की आज मेरे मित्र को फ्रेंडशिप बैंड देना है...

फिर हमको लगा की शायद ऐसे लोग औपचारिकता में यकीन नही करते है...

और हम जानकार और काबिल बनने के चक्कर में इन मोबाईल कंपनियों को केवल एक दिन में करोरो का फायदा पहुचा देते है..

और खुद का गवा देते है...

और फिर कहते है की मंदी आ गयी और फला पार्टी जिम्मेदार है इसकी ....

बल्कि जिम्मेदार हम लोग है इसके क्यों की हम जानते है की अगर भारत की अर्थ व्यवस्था टिकी है तो केवल जमा पूजी के कारण ही...

इन दिवसों के कारण हम न जाने कितना रुपया डालर में बदल कर विदेश भेज देते है ...के ऍफ़ सी और डोमिनो पीज्जा के रस्ते....

अत: हमको विलायती भाषा ही अपनानी चाहिए वनस्पत विलायती खान पान , रहन सहन के.....

अगर हम सच में अमेरिका बनाना चाहते है तो आज अमेरिका का वर्तमान देख लीजिये क्यों अगर हम सच में अमेरिका बनेगे तो निश्चय ही यह हमारा आर्थिक भविष्य होगा.....





1 comment:

  1. हमेशा की तरह सरल, निश्छल और उम्दा.
    जीते रहो.

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