Saturday, December 7, 2013

हल्कें नही है ये सारें तहलकें ........


मित्रों नमस्कार ....
.
आज कल कुछ दिनों से समाचार चैनलों पर यौन उत्पीड़न और बलात्कार की ही खबरो कि उपस्थिति ज्यादा हो गयी है    , अगर आप आम लोग है मतलब कि घर में एक कि टी वी है  कि तो किसी भी टी वी के दुकान पर जाईये और हर टी वी पर अलग समाचार चैनल लगा कर करीब तीस मिनट देखिये, आपको हर चैनल पर अलग अलग लोगों द्वारा किये गए  यौन उत्पीड़न कि खबर दिख जाएँगी।
खैर खबर है तो दिखेगी ही ....लेकिन तेजपाल के मामले के बाद हर उत्पीड़न और बलात्कार के खबर को इलेक्ट्रानिक मिडिया ने एक नया स्लग दे दिया है वो है "तहलका "
जैसे - एमपीसीए में तहलका , निफ्ट में तहलका , डी आर डी इ में तहलका इ टी सी  इ टी सी ......

ये बात अलग है कि अभी हर रेपिस्ट को तरुण तेजपाल नही कहा जा रहा है।
आलम ये हो गया है कि मैंने प्रभात गर्ग के संस्थान के नाम को कन्फर्म करने के लिए उसका नाम मैंने गूगल पर डाला तो चौथे नम्बर के ही रिजल्ट में उसका जिक्र था , मेरे गुरु जी कहते थे कि अगर तुमको अपनी इस दुनिया में  औकात पता करनी हो तो अपना नाम गूगल पर डालो और  सर्च करो ...तब पता चलेगा कि तुम इस दुनिया के किस पायदान पर खड़े हो.
खैर जो भी हो अब सच में मुद्दे पर आते है ...

मैंने ऊपर " हल्कें नही है ये सारें तहलकें " इसलिए लिखा की एक बात ध्यान देनी हो कि आसाराम के बाद अर्थात तरुण तेजपाल के बाद से जितने भी मुद्दे आये है उस पर बस ऊपरी ऊपरी बहस ही होती आ रही है , कहने का मतलब ये है कि जो सवाल आसाराम और निर्भया कांड के बाद मिडिया में उठाये गए थे कि जैसे लोगो कि सामाजिक मनोवृत्ति कैसी हो गयी है ? लोग इतने उत्तेजित और वहशी कैसे हो गए ? और तो और कितने चैनल निजी बस और निजी ऑटो कर के उसका नाट्यरूपांतरण तक कर दिए थे , ठीक आसाराम के मामले में हाकिम रहमानी और हाकिम उस्मानी जैसे लोग भी टी वी पर आकर ये बताने लगे कि कोई आदमी किस उम्र तक सेक्स कर सकता है ?
लेकिन ये सो काल्ड क्रिएटिविटी अभी तक किसी भी चैनल ने तेजपाल के मामले के बाद भी , और उसके  लगातार हो रहे मामले के बाद भी नही उठा रहे कि आखिर कौन - कौन सा मामला कार्य क्षेत्र पर उत्पीड़न का बनता है , और बातों  महिलाये कैसे सजग रहे ? और जागरूक रहे ? इस सब मामलों से ....
महिला आयोग बस इसी में परेशान है कि किसने पीड़िता का नाम बता दिया ? और किसने क्या बयान दे दिया ?
रही बात अपने देश कि पुलिस कि तो जब साधू को पकड़ने में इनको ५ ८ दिन लग सकते है तो पेशेवर मुजरिम को ये ऐसे पकड़ लेते होंगे जैसे कि कि मैंने बी जे एम सी के सेकेण्ड सेमेस्टर का सेकेण्ड टॉपर हो गया था मलतब कि संयोग से ....
लेकिन पत्रकारिता से जुड़े लोगों को चाहिये कि इन तहलकों के मामलों में तह तक जाये और लोगो को जागरूक करे कि इसके कौन से पहलू है ? कौन सा आचरण इस दायरे में आता है और कौन सा नहीं। …
वर्ना जानकारी के अभाव में लोग सच में फारुख अब्दुल्ला कि तरह डरने लगेंगे ....
नतीजा ये भी हो सकता है की महिलाये भी अपने कार्यस्थल पर इस प्रकार के बढ़ते मामलों से और जानकारी के अभाव में बाकि लोगो द्वारा उपेक्षा कि न शिकार हो जाये ……  












No comments:

Post a Comment