Tuesday, September 22, 2015

सनक का दारोगा पार्ट - 2

सनक का दारोगा पार्ट - 2
उस दारोगा की दबंगई ने पूरे देश को हिला दिया दिया, आम लोगों से लेकर निजामों तक सबके होश फाख्ता हो गए थे
चारों तरफ सवाल था कि अगर कानून के हाथ लंबे है तो उसे पैर चलाने की जरूरत क्यों पड़ी ?
उस सनक के दारोगा की उस चाल ले कानून को अंधे के साथ लंगड़ा कर भी दिया था ।
वो उस बूढ़ा टाइपिस्ट उस मंजर को याद भी नहीं रखना चाह रहा था लेकिन भूलना भी उसके बस की बात नहीं थी।
फिर क्या था सरकार  सकते में आई और कर सकने की स्थिति में भी पहुंच गई ।
कि जीतनी मदद हो सकेगी कि जाएगी
शहर का कलक्टर अपने साथ हिंदी और अंग्रेजी के दो टाइपराइटर लेकर बूढे टाइपिस्ट के घर पहुंचा।
टाइपिस्ट ने अंग्रेजी लौटा दी और हिन्दी टाइपराइटर अपने पास रख लिया।
वो सोचा चलों कोई बात नहीं वो दारोगा ही सनकी था बाकी सब लोग तो समझदार हैं,संवेदनशील है । मेरे साथ गलत हुआ तो क्या हुआ ?
बाद में कुछ तो सही करने का प्रयास किया गया।
बस उसकी मांग थी कि काश! सबके साथ ऐसा हो पाता।
इसी उम्मीद में उसका एक एक  दिन गुजरने लगा लेकिन सरकार तो दिन ब  दिन ऐसी पीछे पड़ी मानो उत्तम प्रदेश में सिर्फ उसकी ही सुरक्षा बहुत जरूरी है ।
साइकिल से आने वाले उस टाइपिस्ट की सुरक्षा में सरकार ने पुलिस पर ही ले- आने और ले- जाने कि जिम्मेदारी डाल दी , अब हर सुबह बाबा के घर पुलिस जीप में पहुंचती है फिर बाबा अपना टाइपराइटर लेकर जीप में बैठते है और हजरतगंज के उसी फुटपाथ पर आ जाते है, फिर दिनभर के काम के  बाद उसी नीली जीप में पीछे बैठ कर वापस घर जाते हैं
अब दिन भर का ऐसा ही चलने लगा...सुबह पुलिस की जीप में बैठना, फिर फुटपाथ पर बैठना, शाम को फिर पुलिस की जीप में बैठना और घर चलने आना।
हा लेकिन वक्त चाहे जितना भी बदल गया हो टाइपिस्ट बाबा के नसीब से फुटपाथ नहीं जा सका। भले ही सरकार ने इतना बड़ा बीड़ा उठा लिया हो
धीरे-धीरे बाबा को महसूस हुआ कि उसका इस्तेमाल हो रहा है फिर बाबा एक दिन बाबा ने सोचा कि क्यों न सरकार के साथ भी वैसा ही कुछ किया जाए जैसा कि सरकार ने उसके साथ किया ।
फिर क्या सरकार के रवैये से आजीज आ चुके बाबा ने भी ठीक वैसे ही सरकार के टाइपराइटर को लात मार दी जैसे उस दिन बाबा के टाइपराइटर को उस सनक के दारोगा ने मारी थी ।
फिर बाबा आजाद, पुलिस चली गई , जीप भी चली गई, बाबा अब अपनी साइकिल पर अपना टाइपराइटर लादता है और उसी फुटपाथ फिर से बैठता है। वही फुटपाथ जो सरकार भी उसके नसीब से नहीं छिन सकी जिसने और देने का डिंडौरा पूरा पीट दिया था

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