Monday, February 7, 2011

महंगाई या प्रलोभन.....?

नमस्कार मित्रो.....
आशा करता हु की कल जो मैंने नया सिद्धांत निकला और उसको सिद्ध भी किया वो आपको पसंद आया होगा...
वैसे आपको कोई बात नही समझ में आई होगी तो हमसे जरुर पूछ लीजियेगा मै उसको समझाने का पूरा प्रयत्न करूंगा...
वैसे आज हम लोग बात करेगे एक बहुत ही सवेदनशील मुद्दे पर....वो मुद्दा है पढाई लिखाई का मुद्दा...
आज हम लोग बात करेंगे की लोगो किताबो से मोह भंग क्यों हो रहा है....? क्या कारण है इसके पीछे....?
कहते है की पढाई लिखाई से तो भूत भी भागता है फिर हम तो इन्सान है....
कुछ भी बात करने से पहले मै आपको ये बताना चाहता हु की मै केवल भारतीय लोगो की ही बात कर रहा हु....
हाला की हमारे देश में पढ़े लिखो की प्रतिशतता बहुत ज्यादा है...फिर भी कही न कही हम लोग का मोह किताबो से भंग होता जा रहा है...
मै यहाँ किसी बीजगडित,अंक गडित या फिर किसी विशेष विषय के बारे में नही कह रहा हु...
क्यों की हम भारतवाशी इन्ही किताबो को पढ़ कर अपनी प्रतिशतता बनाये हुए है....
लेकिन एक बात तो मानना पड़ेगा...आपको आप इन किताबो को पढ़ कर अपने सम्बन्धित छेत्र में तो पारंगत हो सकते है लेकिन आप समाजिक छेत्र में कुछ नही कर सकते...
फिर भी क्या कारण है की हम लोग साहित्य , उपन्यास और कला से सबंधित किताबो से मुह मोड़ लेते है....?
इसका उदहरड भी मै आपको देता हु जिससे की मै ये लेख लिखने को मजबूर हुआ.....
हुआ यु की आज मै विश्वविद्यालय गया तो मेरे डिपार्टमेंट के सामने एक खाली मैदान है जिसमे आज कल एक पुस्तक मेला लगा हुआ है...
और जहा पर मेला का प्रवेश द्वार है वह लिखा है की इस मेले में आपका प्रवेश निः शुल्क है ....
अर्थार्त आपको प्रवेश करने का कोई व्यय नही देना होगा....
इसके पीछे आयोजन समिति का उद्देश्य क्या होगा ? क्या ये तय करते वक़्त आयोजन समिति ने देश की महंगाई के बारे में सोचा होगा की प्याज ,पेट्रोल ,चीनी सब कुछ महंगा है अब जनता पर कोई और भार न पड़े इस मेले के वजह से ...?
या कोई प्रलोभन होगा लोगो को बुलाने कर लिए....?ये हमको नही पता ,,,,
लेकिन मेरा दिमाग क्या कहता है की शायद आयोजन समिति ने सोचा होगा की अगर प्रवेश का भी कोई कर लगा दिया जाये तो लोग बहुत कम हो जायेंगे.....
लोग क्यों कम हो जायेंगे या हो जाते है ?ये बहुत सोचनीय विषय है.....
क्या हम लोग आज इतने काबिल हो गये है जितना हमको होना चाहिए....या जितना हमको हमारे पूर्वजो में बना कर छोड़ा था...
शायद नही...
तो फिर क्यों हमको किसी पुस्तक मेले में बुलाने के लिए कोई शुल्क नही रखा गया है...?
जब की हमारे घर में उतने खर्चो वाला कुत्ता पलता है जितने में एक परिवार भी पल सकता है....
लेकिन सब से विडम्बना यही है की जब हम लोग कुछ भी लिखते है या बोलते है तो हम लोग बहुत ही साफ और नेक विचारो वाले हो जाते है....और जैसे ही हम लोग वास्तविक दुनिया में आते है तो सारे विचार धरे के धरे रह जाते है....
तो जरूरत ये है की हम जो भी सोचे वो वास्तविकता में भी वास्विक हो.....
तब शायद किसी पुस्तक मेले में किसी को बुलाने के लिए निः शुल्क प्रवेश का प्रलोभन नही दिया जायेगा....

1 comment:

  1. बेटे ये सिर्फ भाषण बन के रह गया है मैं तो पढूंगा ही पर लोग इससे जुड नहीं पायेंगे

    ReplyDelete