Saturday, March 5, 2011

हम न होते तो क्या होता ?

नमस्कार मित्रो.....
बहुत दिनों की अनुपस्थिति के बाद मै एक बार फिर अपना विचार ले कर आपके बीच उपस्थित हु...
जब बात अनुपस्थिति की ही हो रही है तो मेरे दिमाग में एक बात आई की मै न होता तो क्या होता....?
तो सोचा की आज इसी पर कुछ लिख दिया जाये....क्यों की मै जब कोलेज में पढ़ता था तो एक लेख पढ़ा था जो हम लोगो की किताब के पाठ्यक्रम में था..अब वो लेख है या नही इसकी हमको जानकारी नही है...वो लेख था पंडित प्रताप नारायण मिश्र का और नाम था मित्रता ...उसमे एक पंक्ति थी की व्यक्ति की उपस्थिति का एहसास तब ही पता चलता है जब वो अनुपस्थित रहता है..मतलब की किसी की क्या एहमियत है वो उसकी अनुपस्थिति ही बयाँ कर सकती है....
वैसे हम लोग इस बार खुद ही ये जानने की कोशिश करेंगे की हम न होते तो क्या होता ? इसमें किसी भी बाहरी व्यक्ति का कोई सहयोग नही लिया जायेगा....
हल की ये काम बहुत कठिन है क्यों हमको अपनी एहमियत खुद ही सिद्ध करनी होगी...और आम तौर हर आदमी को थी लगता है की वो इस दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण और समझदार व्यक्ति है...और आज के वक़्त में आप किसी को मुर्ख कह भी नही सकते इस दुनिया में जहा तक मेरे जानकारी का सवाल केवल दो लोग है जिसने किसी को मुर्ख कहने की हिम्मत है...
१-यूधिस्ठिर जी ने यछ महाराज से कहा था की जब यछ जी यूधिस्ठिर जी से सवाल किया की दुनिया में सबसे मुर्ख कौन है ? तब यूधिस्ठिर जी ने उत्तर दिया की मनुष्य क्यों की वो रोजाना कितनो को मरता देखता है और फिर भी सोचता है की वो अमर है ..
और दूसरा हिम्मत वाला मेरे के क्लास का है जो हमसे अभी कुछ दिन पूर्व कहा की मनीष तुम बहुत मंद बुद्धि हो ....लेकिन मैंने भी उसके बयान पर कोई प्रतिक्रिया नही दी क्यों मुझे तुरंत यूधिस्ठिर जी की बात याद गयी और फिर मैंने सोचा की यूधिस्ठिर जी कभी असत्य नही कहते थे सो मैंने उसकी बात लिया ..
खैर छोडिये हम लोग तो अपनी अनुपस्थिति की बात कर रहे थे न....? की हम न होते तो क्या होता ?
कितना अजीब लगता है न ये सोच कर भी की हम न होते तो क्या होता....? और यकीन मानिये तो मेरे हाथ काम नही कर रहे है इस बात लिखने के लिए..
जरा सोचिये की हम लोगो ने अपने जीवन काल न जाने कितने काम किये है कुछ अच्छे तो कुछ खराब भी..
लेकिन आज मेरे पास लिखने के लिए कुछ भी नही है...
जब की एक सीधी सी बात है की हम लोगो के होने से जो जो काम हुआ है अगर हम न होते तो वो वो काम नही होता ...लेकिन इतना कह देना खुद के साथ बेमानी सी लगती है ...
लेकिन इस बार मैंने ठान ली है की अपने इस लेख में कही भी राजनीती नही लाऊंगा ..
फिर एक दिन ऐसे ही मैंने अपने दो दोस्तों से बात करने लगा चुकी वक़्त ज्यादा था और लोग कम थे इस लिए हम अपने घर की भी बात करने लगे उस बात चीत में मैंने कुछ अपनी कही और कुछ उनकी सुनी..
लेकिन उन लोगो ने हमसे कहा की तुम्हारे घर के लोगो को तुमसे बहुत दुःख होता होगा लेकिन वो तुमसे कह नही पा रहे होंगे...
फिर मैंने सोचा की मैंने तो कोई गलत काम किया ही नही लेकिन जब मेरी बात से ही सामने वाले को मै गलत लग रहा हु तो कुछ तो बात जरुर होगी...
फिर उनमे से एक ने कहा की तुम क्या हो...? तुम जैसे हो वैसे ही हो या फिर कोई और छुपा चेहरा है तुम्हारा ? कभी कभी ऐसा लगता है दुनिया की समझ तुमको बहुत ज्यादा है...
फिर मैंने सोचा की जब मै हु तो लोगो नही समझ में आ रहा हु तो अगर नही होता तो क्या होता ?
मैंने उनके सभी प्रश्नों का उत्तर दिया लेकिन हमको उनकी ये बात की तुम्हारे घर के लोगो को तुमसे बहुत दुःख होता होगा लेकिन वो तुमसे कह नही पा रहे होंगे...बहुत देर तक उलझन में डाली रही...
लेकिन मुझको पता भी चल गया था की मै न होता तो क्या होता....शायद मेरे घर वालो को दुःख नही होता अगर मेरे दोस्त सही कह रहे होंगे तो ...
और भी काम मैंने किये है जो अच्छे है लेकिन जब सामने वाले ने ये कह ही दिया है तो उनकी बात ही हमको सबसे महत्वपूर्ण लगती है ...मै न होता तो मेरे घर वालो को दुःख न होता ....

2 comments:

  1. मै न होता तो मेरे घर वालो को दुःख न होता
    मनीष अगर आप न होते तो मुझे गुरु जी प्रणाम कौन कहता
    और अगर ऐसा नहीं होता तो मुझे दुःख होता
    इसलिए आपका सोचना गलत है
    और आपके न होने से बहुतों को दुःख होता

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  2. maneesh aap ka yeh sochna galat hai ..aap hain is liye ghar walon ko dukh hai...kisi third party ke khne se aisa nhi sochna chahiye..aap se hi to bjmc me raunak hai...aap na hote to itna locha kaun karta ....aur____kaun karta.

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