Friday, May 18, 2012

स्त्री को खुद समझना होगा की वो स्त्री है.....

नमस्कार मित्रो....
मेरे ब्लॉग पर आप सबका स्वागत है, बहुत दिनों बाद आपसे मुखातिब हो रहा हूँ अत: आप से निवेदन है की हमको लापरवाह ही समझिएगा कोई नेता नही जो सिर्फ काम की वजह से ही हम लोगो के बीच में आते है...
वैसे तो मेरा कोई लिखने का मन नही था लेकिन कुछ दिन से ऐसा कुछ घट रहा है जिसको बिना लिखे मन ही नही मान रहा...
हुआ यूँ की अभी कुछ दिन पहले मैंने एक किताब पढ़ी "खुदा की वापसी"..उसमे स्त्रियों  के बारे में लिखा था जिसमे उनकी दशा और दुर्दशा के बारे में बताया गया था लेकिन उस किताब में जितनी स्त्रियों  का जिक्र किया गया था उन सब में पुरुष का हाथ तो था ही साथ ही साथ दूसरी स्त्रियों का भी बराबर का हाथ था...
अगर पुरुष का हाथ एक पति के तौर पर था तो वही स्त्री का हाथ कभी सास  , बुआ , ननद , भाभी के तौर पर था मेरे कहने का मतलब ये है की एक स्त्री जो की एक पत्नी है उसकी दुर्दशा के पीछे सास  , बुआ , ननद , भाभी के जैसे चार स्त्रियों का हाथ होता है और जब हम की सामाजिक मंच पर पहुचते है तो सारा का सारा ठीकरा मर्द पर ही फोड़ डालते है,ऐसा बिलकुल नही है की मै मर्द की तरफदारी कर रहा हूँ क्यों की जब भी कोई भी जायज रिश्ता टूटता है तब इंसान की भावनाये मर जाती है और भावना को कभी स्त्री और पुरुष में नही बाटा जा सकता, ये सबके साथ एक जैसी होती है
आज महिला को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तमाम संगठन कार्य कर रहे है...
अख़बार , टी. वी . चैनल , पत्रिका सब के सब महिलाओ की दशा सुधारना चाहते है लेकिन पता नही ऐसी कौन सी दुर्दशा है जो की राजा राम मोहन राय के समय से  कर आज तक दूर नही हो पाई
रोज नये नये वाद विवाद महिला आयोग द्वारा हम लोग टी. वी .पर देख सकते है की हम स्त्रियों को आत्म निर्भर बनाना चाहते है, हम बेटी बचाना चाहते है , तो हम घरेलू हिंसा खत्म करना चाहते है लेकिन ये सब लोग ये बाते सिर्फ अख़बार , टी. वी . चैनल पर ही करते है...
अभी कुछ दिन पहले ही जसवान्ति नरवार नाम की महिला जिसको महिला शक्ति का पुरस्कार मिल चूका है ,को आश्रम में रह रही लडकियों से जबरदस्ती देह धंधा कराने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया , यहाँ भी महिला की दुर्दशा के पीछे एक महिला का हाथ ही उजागर हुआ..
स्त्री  की दुर्दशा तभी तक है जब स्त्री खुद को कमजोर समझेगी क्यों की ओशो ने कहा है की "जिस मुल्क में माँ खुद को दीन समझे उस मुल्क में उसके बेटे कभी बड़ा नही बन सकते " और वो माँ ही है जो एक बेटा या बेटी पैदा करती है और वही बेटा और बेटी बाद में पति , पत्नी , ननद ,भाभी ,बुआ बनती है
महिलाओ से जुडी कितनी भी किताब पढो चाहे उसको पुरुष लेखक ने लिखा हो या फिर महिला लेखिका ने उसमे एक बात अवश्य लिखी होती है की ये समाज स्त्री को एक सामान समझता है एक विक्रय की वस्तू समझा जाता है और ये बाते हमको अपने दिल से निकालनी होगी...
ये बात दिल से कैसे निकल सकती है जब हर काम में स्त्रियों का ऐसा ही प्रयोग किया जा रहा है , आप आज ही या अभी अपना टी वी चालू कीजिये अधिकतर विज्ञापनों में आपको यही दिखाया जायेगा की आप फलां ड्रिंक पियो तो लड़की आप से बात करेगी, फलां डियो लगाओ तो लडकिय खिची चली आएगी, फलां टूथपेस्ट करोगे तो लड़की आपसे बात करेगी, फलां सिम कार्ड यूज करोगे तो एक नही दो लड़कियां आप से से बात करेंगी..
क्या इन तमाम उत्पादों का विज्ञापन उसके सकारात्मक उपयोगिता के अधार पर नही किया जा सकता था ?
बेशक किया जा सकता था लेकिन इस प्रकार के विज्ञापन मात्र विज्ञापन नही बल्कि हमारे चरित्र प्रमाण पत्र भी मालूम पड़ते है लेकिन ऐसा बिलकुल नही है कोई भी लड़का या पुरुष ये सोच कर कोई उत्पाद नही खरीदता की उसके साथ ऐसा ही होगा जैसा की विज्ञापन में दिखाया गया है..
तो जब हम ऐसे नही है तब हमको ऐसा क्यों समझा जाता है और इस मामले में वो महिला आयोग कहा गया , उसको सामने आकर कहना चाहिए की स्त्री की एक खुद की मर्यादा है जो की उत्पादों की वजह या खासियत से नही टूट सकती...
मेरे इस तमाम बातो को कहने का मतलब यही था की स्त्री क्या है ये कभी स्त्री को बताया ही नही गया हमेशा ये बताया गया की उसको समझा क्या जाता है और जो उसको समझा ही नही जाता...
इसलिए स्त्री को खुद समझना होगा की वो स्त्री न की कोई सामान या न ही कोई बिकाऊ वस्तु अगर स्त्री ने ऐसा नही सोचा तो चाहे कितने भी आन्दोलन हो जाये ,चाहे कितने भी आयोग बन जाये , चाहे कितनी भी किताब छप जाये ,स्त्री की दशा पर कोई प्रभाव नही पड़ने वाला....