द्रोणाचार्य एक ऐसे महान गुरु थे जिन्होंने एक ऐसे छात्र से सिर्फ इस वजह से उसका दाहिना अंगूठा मांग लिया जिससे की इनके चेले को धनुर्विद्या में कोई हरा न सके।
और वो छात्र जिससे इन्होंने दाहिना अंगूठा माँगा था उसको इन्होंने सिखाने से भी मना कर दिया था, जिसके बाद एकलव्य ने द्रोणाचार्य को अपना गुरु मनोनीत किया था और उनकी प्रतिमा बना कर अभ्यास किया करता था ।
और मात्र उसी एवज में एकलव्य ने हस्ते हस्ते अपना अंगूठा काट कर द्रोणाचार्य के चरणों में रख दिया था ।
लेकिन आज विडम्बना देखिये इस आज्ञाकारी छात्र को आज कोई याद नहीं कर रहा और इस खुदगर्ज, लालची गुरु के नाम पर शहर बसाये जा रहे हैं ।
गुड़गांव के साथ अब एक मतलबी मास्टर का नाम जुड़ गया गुरुग्राम ।