Friday, July 28, 2017

नीतीश ने तीर से क्या निशाना लगाया?

क्या नोटबन्दी हो या राष्ट्रपति चुनाव ।
इन दोनों मुद्दों पर नीतीश ने केंद्र का साथ दिया । इसका फायदा यह हुआ कि नीतीश प्रदेश के बाहर पूरे देश में मोदी के समकक्ष खड़े होने की पूरी कोशिश की जिसमें वो कामयाब भी हुए ।
क्योंकि वो केंद्र से अदावत करते हुए कभी भी केजरीवाल टाइप नहीं बनना चाहते थे । वो नहीं चाहते थे की दिल्ली किसी भी तरह उनके सूबे की तरक्की या यूं कहें कि कोई भी रोड़ा न बने....
लेकिन इसीबीच इस देश में विपक्ष के पूरी कोशिश के बाद भी सिर्फ दो ही व्यक्ति थे जो खासकर मोदी को फोकस कर के एनडीए या उनकी नीतियों का विरोध करते थे ।
एक दिल्ली के सीएम अरविंद और दूसरे लालू प्रसाद यादव ।
केजरीवाल सरकार को इस विरोध की कई कीमत चुकानी भी पड़ी है लेकिन इसका फायदा यह हुआ कि उनकी पार्टी दिल्ली के अलावा पंजाब में मुख्य विपक्ष है तो दिल्ली एमसीडी में भी वो शून्य से दूसरे नम्बर पर पहुंची है । जोकी किसी भी नई राजनीति पार्टी की अच्छी शुरुआत मानी जानी चाहिए तब जब आप पर कई आरोप लग भी रहे हो...
अब बाद दूसरे व्यक्ति लालू प्रसाद यादव की जो अपने स्टाइल राजनीतिक तौर तरीकों से खासकर मोदी विरोध का झंडा उठाये हुए थे । इन सब में आपको अगले चुनाव में पीएम उमीदवार के बारे में सोचते रहना होगा....जिसका जिक्र आगे किया जाएगा ।
तो बात लालू की जोकि 27 अगस्त को गांधी मैदान पटना में केंद्र और भाजपा के खिलाफ रैली करने वाले हैं । ये तो तय था कि अगर महंगठबंधन बरकरार भी रहता तो नीतीश उसमे हिस्सा नहीं लेते । उसकी वजह यह है कि वो नहीं चाहते कि 2019 के लिए उन्हें अभी से तैयार बताया जाने लगे और उसका राजनैतिक प्रभाव उनके राज्य पर पड़े और 2019 आते आते वो बिहार को लेकर ही इतने बदनाम हो जाये कि पूरा देश उनपर भरोसा करने में हिचकिचाने लगे ।
लिहाजा उन्होंने बहुत हल्के मामले में नैतिकता और अन्तरात्मा के बेस पर अपनी कुर्सी छोड़ दी है वो पूरे देश मे अपनी ईमानदार छवि बनाने में कामयाब हो गए....
इस नई सरकार से नीतीश को यह फायदा होगा कि अब वो कम से कम 2019 तक बीजेपी के आरोपों से बच गए । और ये भी हो सकता है कि फिर उसवक्त अन्तरात्मा की फिर आवाज आ जाये और नीतीश फिर इस्तीफा दे और नई जिम्मेदारी के अगुवा बन जाएं ।
क्योंकि नीतीश अब सिर्फ परसेप्शन की पॉलिटिक्स कर रहे है और वो जनता को मात्र एक दर्शक समझ लिए हैंजोकी आपके कारनामें पर तालियां बजाती है और सीटियां मारती है ।
इस नए गठबंधन से नीतीश ने बिहार को ही अपनी अगली  सियासी बिसात बना दी जिसमें उन्होंने उसी को अपना साझेदार बना दिया है जो आने वाले कल में उनका आलोचक बनेगा....लेकिन अब उस आलोचना के तलवार की धार को नीतीश ने कुंद कर दिया है ।
कहाँ जाता है कि सियासत में कुछ भी स्थाई नहीं होता....लेकिन बड़ा सवाल ये है कि नीतीश बाद अब अगला शपथ ग्रहण किसका होगा..? वो भी इस कार्यकाल में...?