Sunday, January 30, 2011

जीवन के हर रंगो से वाकिफ लेकिन सादगी से स्नेह ....

नमस्कार मित्रो ...
आज हमको एक अपने क्लास में साथ पढने वाली लडकी के बारे में लिखने को कहा गया है....उसका नाम नेहा है...
कुछ भी लिखने से पहले मै आपको ये बताना जरूरी समझता हु की इस दुनिया में दो तरह के लोग होते है...एक वो जो एक ही जीवन में सबको जान लेते है या जानने का प्रयास करते है..और दुसरे वो जो पुरे जीवन में एक लोग को ही जानने में व्यस्त रहते है...ये बात अलग है की कुछ लोग जो दुसरे तरह के व्यक्तियों की श्रिंखला की संख्या बढ़ाते है उनमे से कुछ उस एक व्यक्ति को को जानने में सफल होते है तो कुछ लोग असफल ...
मै सफल हुआ या असफल ये बताये बगैर मै आपको ये बता बना चाहता हु की मै उन दुसरे प्रकार के व्यक्तियों के समूह का हु....
मेरी बातो से आपको समझ में आ गया होगा की मै जिसके बारे में लिखने जा रहा हु उसके बारे में कुछ खास नही जनता....
वैसे एक बात और है किसी को जानना बहुत टेढ़ी खीर है ये इस लिए की व्यक्ति की प्रकृति एक ऐसी चीज है जो एक पल में भी समझी जा सकती है और नही तो सारी जिंदगी लगा दो फिर भी न समझ में आये...शायद इसी लिए मैंने लोगो को दो भागो में वर्गीकृत किया है ....
क्यों की किसी ने कहा है की...हर आदमी के होते है दस बीस चेहरे ,जिसे देखो बार बार देखो...क्यों की कोई जरूरी नही की अगर किसी लडके पाकेट से माचिस बरामद हो गयी तो हो वो लड़का सिगरेट ही पीता हो..ये बात अलग है की आज कल ऐसे लोगो की तादात में इजाफा हुआ है...
खैर छोडिये इन सब बातो को अब सब्जेक्ट पर आते है...
जैसा की मै आपको पहले बता चूका हु की मै उसके बारे में ज्यादा नही जनता सो मै जो भी लिखूंगा वो बाज़ार जोखिमो के अधीन होगा.
अब चलिए सब्जेक्ट की बात शुरु करते है....

किसी के बारे में लिखना बहुत ही मुश्किल काम है, समझ नही आता के क्या लिखें और क्या नहीं I आज जब कहा गया के लिखना है तो बड़ी कठिन समस्या उत्पन्न हो गयी...लिखें तो लिखें क्या, पर लिखना तो है ही I चलिए फ़िर लिख ही डालें कुछ I हमारे साथ पड़ती है एक लडकी, जिसका नाम है नेहा रंजन...सावला रंग, काली आँखें I क्लास में सबसे अलग...सादगी से भरा रूप , बस अपने काम से मतलब रखती है बाकी दुनिया जहाँ से कोई मतलब नही I अपने ख़ास दोस्तों के साथ रहना बहुत पसंद है उसे...पर क्लास में सभी को बहुत अच्छी लगती है और स्वभाव से भी काफी शांत है I

सभी से अच्चा व्यवहार है उसका, और कोई भी ऐसा नही जो उसके लिए कुछ बुरा बोले I एक मुस्कराहट हमेशा उसके चेहरे पर झलकती रहती है , वो ना ही सिर्फ शांत स्वभाव की है बल्कि दिल की भी उतनी ही साफ़ है...आज हर तरफ हमरं बस स्वार्थी लोग ही नज़र आते हैं वही उसके भोलेपन और सचाई को देखकर थोडा अजीब सा लगता है I हर तरफ आधुनिकता का एक दौर स्व चल चूका है जहाँ दुसरो को खुद से छोटा समझना और अजीबो- गरीब फ़ैशिओनब्ले कपड़े पहना आज की जरूरत बन चुकी है पर इसको देखकर ऐसा लगता है जैसे आज भी सादगी मायने रखती है I ना बोलने चलने में कोई लाग लपट ना ही पहनने ओढने में, ऐसा लगता है मानो सादा जीवन उच्च विचार का अनुसरण कर रही हो I

ज़िन्दगी को अपनी शर्तों पर जीने के बहुत ज्यादा हिम्मत की जरूरत होती है, और ये हिम्मत उसमे नज़र आती है I दुनिया के बनावटी कायदे-कानून से बच कर रह पाना थोडा मुश्किल हो जाता है पर अगर कोई ऐसा ऐसा मिल जाये तो ख़ुशी होती है I एक तरफ जहाँ हम आधुनिकता के नाम पर कोई भी चीज़ बिना सोचे समझे अपना लेते हैं, ऐसे लोगों के लिए ये एक सटीक उदाहरण है I किसी भी बात को आधुनिकता के नाम पर गले लगा लें कोई शान की बात नही, जिसका पता हमें तब चलता है जब बहुत देर हो चुकी होती है I भारतीय मूल्यों के साथ रहकर भी खुद को मोडर्न बनाया जा सकता है, सिर्फ कह देने भर से के हम भी भारतीय मूल्यों को समझते हैं , खुद में काफ़ी नही होता I

जबतक खुद में ये बात ना सनझ ली जाये के ज़िन्दगी सिर्फ फैशन तक ही सिमित नही तो बेहतर होता है, ज़िन्दगी का क्या भरोसा जाने कब खत्म हो जाये I हमें नेहा की जो बात सबसे अच्छी लगती है वो है उसका कम और सटीक बोलना मानो उसने एक बात गांठ बांध ली हो, वो बात है:

"अति का भला ना बोलना, अति की भली ना चुप"

जब वो किसी भी बात को बड़े ही सरल शब्दों में कहती है तो सामने वाले को उसकी बात समझ भी आती है सुनने में अच्छी लगती है, पर उसके साथ एक समस्या है...खुद में थोड़ी उलझी रहती है इन जाने किस बात से घबराती है! खैर इतनी सारी बातें जो हमने कही उससे बस एक बात बताना चाहते थे, आज आधुनिकता के नाम पर हम अपने जीवन मूल्यों से जो खिलवाड़ कर रहे हैं हमें उनका मोल समझना होगा होगा ये बाते मै अपनी तरफ से नही कह रहा हु बल्कि यह उसके जीवन शैली का सारांश है और जहाँ तक बात है आगे बढने की तो ज़िन्दगी अपनी शर्तों पर जी जाती है...किसी और के नही उसकी हर बात हमको यही सीखती है

तो क्यों न हम उसके जीवन शैली से सिख लेते हुए खुद को खुद्दार और आत्मनिर्भर बनाये....

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Friday, January 28, 2011

जाने कहाँ गये वो दिन.....?

माफ़ कीजियेगा ये पोस्ट जरा देर से सम्पादित कर रहा हु....
आज कल हम एक दुसरे को नव वर्ष की शुभ कामना देने में लगे हुए है. लेकिन जरा आज मेरे कहने से आप अपने बचपने में जा कर एक बार उस वक़्त के नव वर्ष अवसर को याद कीजिये. और पता लगाईये की हम आज जब सुचना और संचार के अब तक से सबसे विकसित पीढ़ी में जी रहे है. जब हमारे पास संचार के अनगिनत साधन उपलब्ध है. तब भी हम एक दुसरे से कितने दूर और कितने पास है?
कोई बात नही अगर मेरा अनुभव आप से मेल नही करता तो.
लेकिन जब मै अपने बचपन में गया तो मुझे कुछ ऐसा पता चला...
पहले जब हम लोग छोटे थे तब हम लोगो ये नही पता था की नव वर्ष रात के १२ बजे से ही शुरु हो जाता है. तो इस जानकारी के आभाव में हम लोग नव वर्ष प्रात: काल से ही मनाते थे.उस वक़्त हम लोगो के पास छोटे छोटे ग्रीटिंग्स कार्ड होते थे. उस पर छोटी छोटी कविताये लिखी होती थी... जैसे- टमाटर के रस को जुश कहते है और ग्रीटिंग्स न देने वाले को क्न्जुश कहते है.
एक बात और थी की उस वक़्त भी हम लोगो में प्रतिस्पर्धा रहती की हमे औरो की तुलना में कितने ज्यादा ग्रीटिंग्स मिली है,मैंने किसको दी और किसने मुझको नही दी.
हम लोग शुबह से ही एक दुसरे के घर जाना शुरू कर देते थे.हाला की मै लेट हो जाता था क्यों की रास्ते में सायकिल की चेन उतर जाती थी.उसको खुद से बनाना भी पड़ता था.उस वक़्त और लेट होता था जब पीछे वाला चेन उतर जाता था.
अगर किसी को ग्रीटिंग्स नही मिली और वो अपने ग्रीटिंग्स के बारे में कुछ पूछ लिया तो तो उससे हमे झूट भी बोलना पड़ता था की "दोस्त तुम्हारी वाली मै घर पर ही भूल आया हु." कल ले लेना.
इस तरह हम लोग पुरे दिन नव वर्ष मानते थे.
अब चलिए बात आज की करते है.......
आज हम नव वर्ष की सारी बारीकियो को जानते है की नव वर्ष रात के १२ बजे से शुरु होता है.और उसे हम शिला की जवानी के साथ मानते भी है. आज हमारे पास एस.एम.एस है जिसे जरिये हम एक दुसरे को रात के १२ बजे ही बधाई दे सकते है.लेकिन उस संदेश में टमाटर के रस जैसे बाते नही बल्कि आने वाले साल से जुडी तमाम अच्छी बातो की कल्पना की जाती है.आज हमारे पास वक़्त नही की हम किसी के घर जा सके. आज हम किसी को अगर बधाई देना भूल गये तो और अगले ने अगर उसके बारे में पूछ लिया तो एक तकनीक वाला झूठ अक्सर बोला जाता है की मैंने मोबाइल बदल लिया है और सारे के सारे नम्बर इधर उधर हो गये है.जब की उस झूठ को सुनने वाला भी वह झूठ उससे पहले न जाने कितने लोगो से बोल चूका होता है.
अब जरा इन दोनों बातो का उपसंहार निकालते है की कल हमारे पास स्लैम्बूक था और आज फेसबुक है, कल हम लोगो के पास ग्रीटिंग्स थी और आज मोबाइल, ऑरकुट है.
कल लोगो का एक दुसरे के साथ मेल था और आज हर एक दुसरे के पास इ मेल है. कल हमारे पास लिखने को छोटी छोटी कविता थी और आज लिखने की अच्छे अच्छे विचार है. कल हमारे पास रस्ते में धोका देने वाली सायकिल थी आज हम लोगो के पास उससे अच्छे अच्छे साधन है. कल के हमारे झूठ में मासूमियत थी और आज के झूठ में एक औपचारिकता. कल हम लोग शुबह से नव वर्ष मानते ठेव और आज हम लोग पूरी रात मानते है लेकिन वो कल के जैसे अपनापन नही दीखता.
कल हम हम लोग शुबह उठ कर मंदिर जाते थे और आज रात में १२ बजे मदिरालय जाते है.कल हम लोग स्कुलो में देश भक्ति कविताये सुनते थे और आज हमारे बीच ,हमारे चैनलों पर शिला और मुन्नी दिखाई देती है.
कही न कही हम पहले से ज्यादा विचारवान ,विकसित और रंगीन हो गये है लेकिन हमारा कल का नव वर्ष मनाने का तरीका ही हमको बेमिसाल लगता है .
क्या वो कल एक बार फिर से वापस नही आ सकता ?
हम आज एक दुसरे के पास हो कर भी दूर क्यों है...?मुझे इसका उत्तर नही मिल पा रहा है....
मेरा मन तो मुझ से पूछ रहा है की जाने कहाँ गये वो दिन...?

मित्र को धन्यवाद..

दोस्त तुमको मेरा जन्मदिन याद है ये जान कर बहुत ख़ुशी हुई....
तुमने अपना कीमती वक़्त का कुछ हिस्सा इस खत के माध्यम से हमको समर्पित किया इसके लिए धन्यवाद....
तुमने मुझे जीवन की महत्ता का अहसास कराया है....
और मै ये जनता हु की जब तक तुम जैसे दोस्त मेरे साथ रहोगे मै अपने मार्ग से नही भटक सकता ....
लेकिन मित्र ये सोच कर कभी कभी दुखी भी होता हु की मैंने किसी एक को ध्यान देने के चक्कर में ये भूल गया की तुम जैसे किनते लोग मुझे ध्यान देते है...
जिनको केवल मेरी खुशी,मेरी हसी से मतलब था....
तुम लोगो ने मेरा तब साथ दिया जब मेरा साथ उसने छोड़ दिया था जिसने हर वक़्त यही कसम खायी थी की वो मेरा साथ कभी नही छोड़ेगा...
लेकिन मै हर वक़्त उसी कसम तोड़ने वाले को लेकर दुखी रहता था जब की मुझे तुम जैसे लोगो पर खुश होना चाहिए था की तुम लोगो ने बिना किसी वादे के मेरे साथ बने रहे ....
मै यही सोचता हु की मेरा दिल तो किसी एक ने दुखाया पर मैंने अपने स्वार्थ में बह कर न जाने कितने लोगो का दिल दुखाया ......
पता नही उस वक़्त मेरे साथ गलत हुआ की सही ? लेकिन इतना जरुर पता है की किसी एक लोग के द्वारा धक्का देने के बाद इतने सारे लोग मुझे सम्हालने के लिए आगे आये....और वो तुम जैसे लोग मेरे सबसे प्रिय लोग बन गये हो....
जब भी मै उन पुरानी बातो को सोचता हु तो लगता है की जो होता है वो अच्छे के लिए ही होता है .......
तुमने मुझे हमेशा यही बताया है की कैसे दो सही रास्तो में से बेहतर चुनते है ? और कैसे दो गलत रास्तो में से मुनासिब ?
मै तुम्हारे द्वारा बताये गये सुझाव पर अमल करूंगा ......
इसी के साथ मै अपनी बात खत्म करता हु......
और मै इश्वर से यही कामना करता हु की तुम सदैव सफलता को प्राप्त करते रहो...