Thursday, December 23, 2010

समर पड़ से ले कर खुदगर्जी तक का सफर

नमस्कार मित्रो...
देखते देखते साल २०१० का सफर खत्म होने को है...
तो आज हम लोग इस लम्बे मगर छोटे प्रतीत होने वाले सफर के एक छोटे से भाग पर चर्चा करते है...
वो है समरपड़ से ले कर खुदगर्जी तक का सफर ...
आप सोच रहे होगे न की हमने इस साल इन् स्टेशनों के बीच सफर कब तय किया...?
तो मै याद दिलाता हु ये सफर छोटा तो है मगर ताज़ा भी है...
इस सफर को समझते है...
फ़िल्मी तरीके से....अभी अभी कुछ दिन पहले एक सगीत हम लोगो के बीच बहुत लोकप्रियता से सुनाई और दिखाई पड़ रहा था जो की एक समरपड़ भावना को दर्शा रहा था॥
वो गीत था मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए...
मतलब की इसमें मुन्नी का बदनाम होना अपने प्रिये के प्रति समर पड़ को दर्शाता है...
ठीक इसी तरह कामन वेल्थ गेम्स में हमारे देश के खिलाडी तो खूब मेहनत किये लेकिन खिलाडियों के खिलाडी सुरेश कलमाड़ी ने एषा खेल खेला की देश खिलाडियों के खेल की वाहवाही केवल एक दिन की खबर के अलावा कुछ नही बन पाई...ये था हमारे देश के खिलाडियों का समर पड़ जो की कलमाड़ी साहब के कारण धूमिल हो गया...
अभी मै हम इस समर पड़ से भरे कर्णप्रिय और नैन सुख से भरे संगीत को पूरी तरह आत्मसात भी नही कर पाया था की समर पड़ के विपरीत और खुदगर्जी के भावना से लबालब एक गाना मार्केट में आ गया ...किसी और की मुझको जरूरत क्या मै खुद से प्यार जताऊ(शिला की जवानी) ने मार्केट में खुदगर्जी की गर्म हवा चला दी...
जब समर पड़ में सुरेश कलमाड़ी साहब जिम्मेदार हो सकते है तो खुदगर्जी में आम आदमी हाथ कैसे हो सकता है...?
इसमें हम लोग बात करेगे ऐ राजा की जो इतने खुदगर्ज है की इनकी खुदगर्जी देख कर शिला भी सरमा जाये॥
राजा साहब ने इतनी सावधानी से अब तक का सबसे बड़ा घोटाला कर डाला और वो भी अकेले अकेले।
कलमाड़ी के करामात और राजा की अपने मनत्रालय में राजशाही ने मनमोहन सरकार जो की खुद को मनमोहक सरकार मानती थी को इन् दोनों स्टेशनों के बीच दो स्टेशनों के बीच के सफर के दौरान बहुत परेशानी हुई..और साथ ही साथ बिहार की हार जो की राहुल गाँधी के गले में पड़ा हुआ है ने भी सरकार के घाव में नमक का काम किया है॥
खैर आपको ये सफर कैसा लगा ? ये जरुर बतायेगा ...
नये साल में हम आशा करते है है मुन्नी की बदनामी और शिला की जवानी केवल लोगो का मनोरंजन ही करेगी॥
इन् गानों का मतलब किसी घोटाले को सम्बोधित नही करेगा...
इस्सी के साथ मै आप सबको नये साल की शुभ कामना देने के साथ ही विदा लेता हु॥
नमस्कार ॥

Saturday, October 30, 2010

हाय रे होठ लाली...................................

नमस्कार मित्रो ....
आप सबको दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाये....
आज हम लोग बात करेंगे धमाके की.....एक ऐसे धमाके की जो की इकोफ्रेंडली धमाके जैसा लगता है....
लेकिन आपको भारत वर्ष के बारे में पता तो होगा ही....यहा होता कुछ है होते होते कुछ और ही हो जाता है...
यहाँ कोई जूता घिस घिस कर उतना नही कमा पता पता जितना की एक लड़का किसी गड्ढे में गिर कर कमा लेता है....(प्रिंस)
यहा के लोगो को यहा की समस्या नही दिखती और बाहरी कोई यहा की समस्या पर छोटी सी फिल्म बना कर ओस्कार जित जाता है....(स्माइल पिंकी )
खैर छोडिये यहा ऐसे धमाके होते रहते है.....
इस बार जो धमाका हुआ है वो भी सृंगार से निकला हुआ है....
वो है एक यूवती के सोलहो सृंगार में से एक होठ लाली....
हुआ ये की...आई आई टी रुडुकी में कुछ दिन पूर्व वहा के लडको ने अपनी सह:पाठी महिला मित्रो को अपने मुह में लिपस्टिक दबा कर उनके होठो को लाल किया.....और साथ ही साथ अपनी संस्कृति को कालिख भी पोत दी....
हमे एक तरफा विरोध करने से पहले ये सोचना चाहिए की ये वो लोग है जिनकी इस हरकत को बचकाना कहना और भी बचकाना होगा...क्यों की ये लोग हमारे देश के भावी ईन्जीनियर है....
इन लोगो ने ऐसा करने से पहले क्या सोचा होगा ?
ये तो यही लोग बता सकते है....लेकिन एक बात जो हमारी समझ में आती है वो है की विदेशियों की नकल...
वो ही लोग ऐसा काम करते रहते है....
मै अपने ब्लॉग के माध्यम से उनको ये बताना चाहता हु की हम लोग जिनकी नकल आंख बंद कर के कर है....वो लोग कल भी ऐसे ही थे और कल भी ऐसे ही रहेंगे....
लेकिन कल हमारा देश सोने की चिड़िया और विश्व का गुरु था....,लेकिन आज क्या है...
आज हम जो भी है अपने इस नकल करने के स्वभाव के कारण ही है...॥
जो कुछ भी .आई आई टी रुडुकी में कुछ दिन पूर्व हुआ वो हमारे शैछिक वातावरण को दूषित करने के लिए पर्याप्त है...
आज हम विदेशियों की नकल और इंटरटेनमेंट के लिए लिपस्टिक लगा रहे है और कल मंगलसूत्र पहनायेंगे और सिंदूर भी लगा देंगे....
जब हम इस बारे में और लोगो से बात किये जिसमे सभी वर्ग के लोग थे तो कुछ युवा ऐसे मिले जो की इस घटनाक्रम को एक दम से सही करार दिया और कहा की अब हमको इतनी छुट तो मिलनी ही चाहिए...
तो इससे एक बात साफ है की जब तक हमारे आधुनिकता ,समाजिकता और नैतिकता में उचित ताल मेल नही होगा तब तक हम सही मायने में विकसित नही हो पाएंगे...
इस के लिए आब वक़्त आ गया है क्यों की.....
अब ऐसे मंजर सामने आने लगे है...
लोग गाते गाते चिल्लाने लगे है....
शिछा का पानी बदल दो यारों...
क्यों की इस्सके पुष्प दल मुरझाने लगे है....
आपकी प्रतिपुष्टि का इंतजार है हमको.....

Tuesday, October 26, 2010

ये सडक दो ज्योतिषियों की दुकान से हो कर जाती है....

मित्रो को नमस्कार और बडो को प्रणाम....
कल मै जब अपने हॉस्टल से निकला तो मेरी मंजिल थी...भारतीय जनता पार्टी का कार्यालय....मुझे रास्ता ठीक ठीक नही पता था ..मै जब निशातगंज पहुचा तो एक सज्जन से कार्यालय का पता पूछा उन्होंने बताया की आप एकदम सीधे चले जाईये...जहा पर आपको ज्योतिषियों की दुकान मिलेगी..वही आपका कार्यालय है....
मै वह पहुचा और काम निपटा कर बाहर आया तो हमको लगा की उस सज्जन व्यक्ति ने हमको पूरा पता नही बताया...क्यों की यहाँ सडक के दोनों तरफ ज्योतिषियों की दुकाने है...
एक तरफ जो की सडक के किनारे अपनी दुकान लगाये है...और दूसरी तरफ विधानभवन जिसमे हमारे राज्य के निर्वाचित ज्योतिषी रोजाना दुकान lgate है....
अब जरा दोनों ज्योतिषियों का तुलनात्मक अध्यन करते है ....
सडक के इस पर वाला ज्योतिषी जो की लोगो का हाथ देखे है और सलाह देते है की...आप ये करेंगे तो आपकी तमाम समस्यां खत्म हो जाएगी....
समस्यां मतलब...बच्चे का दाखिला , बेटी की शादी,बेटे की सरकारी नौकरी ,आर्थिक परेशानी कब खत्म होगी? इत्यादि....
हम aam जनता उनकी बातो का भरोषा भी करते है....
हमे लगता है की ये वाला ज्योतिषी सही कह रहा है....
अब बात करते है है सडक के उस पार वाली दुकान की जिसमे हमारे द्वारा भेजे गये ज्योतिषी आपनी दुकान lgate है....
इसमें दुकान लगाने वाले को विधायक कहते है...
जो की हमारे राज्य का भविष्य का निर्धारित करते है....और उसी राज्य में हम aam लोग भी रहते है...जिनकी समस्या हम पहले बता चुके है...
मजेदार बात ये है की जो समस्या हम लोग सडक के इस पार वाले ज्योतिष से बताते है...वो समस्या सड़क के उस पार वाले ज्योतिषियों के समूह द्वारा पैदा की गयी होती है...
मतलब की बेरोजगारी , महगाई, बीमारी,इत्यादि।
क्यों की इनके गलत काम से हम aam लोग परेसान होते है...
और फिर शांति के लिए सडक के इस पार वाले ज्योतिषियों के पास आते है...
सो हमको अपना ज्योतिषी खुद ही चुनना होगा...जो हमारा हमारे भविष्य को सुरछित कर सके...
इस्सके लिए हमको अपने लोकतान्त्रिक पर्व में मतदान करना होगा...
जो की हमारे हिसाब से सही होगा...
अब मित्रो आप को तो दोनों ज्योतिषियों के बारे में पता चल गया....न॥?
अब मै ये आप को ये छुट देता हु की आप कौन सा ज्योतिषी पसंद करेंगे...
इस पार वाला या उस पार वाला...?
हाला की ये सडक दो ज्योतिषियों की दुकान से होकर जाती है...

Saturday, October 23, 2010

क्या से क्या हो गया लखनऊ...?

नमस्कार मित्रो...
मै अपनी अनुपस्तिथि की बिना कोई वजह बताते हुए.....आप लोगो से माफ़ी मांगता हूँ !
आज हम लोग बात करेंगे..नवाबो और तहजीब के शहर लखनऊ की....और ये जानने की कोशिश करेंगे की "ये कहाँ आ गये हम यु ही साथ चलते चलते ....."
जी हां .....जैसे जैसे वक़्त का पहिया घूमता रहा...वैसे वैसे कल का अवध आज का लखनऊ बन कर सामने खड़ा है....
जहाँ कल इक्के के घोड़े के खुर की ट्प ट्प की आवाज गुजती थी...वही आज फ्र्राटे भरती गाड़ियाँ पीछे से निकल जाती है और आवाज तक नही होती...
लेकिन शोर पहले से भी ज्यादा है...
आखिर इस शोर की वजह क्या है...?
सुनने में तो ये विरोधाभाषी पंक्तियाँ लगती है..लेकिन वक़्त के साथ साथ इस विरोधाभाष की स्वीकारना ही पड़ेगा...
पहले के अवध में केवल लोग रहते थे...न ही एक दुसरे में पतंग के धागे जैसी उलझी सड़के थी...और न ही आकाश को भेदने वाली इमारते॥
थी तो सिर्फ अदब,सादगी,और शांति। था तो सिर्फ सुकून ...जो की आज किसी किसी के पास नही है॥
आज बगल में क्या हो रहा है...किसी को पता नही...लेकिन बिग बॉस में क्या हो रहा है...वो मेसेज के इन्बोक्स में लिखा होता है....
है न विरोधाभास ...
कहते है की आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है....लेकिन यहाँ सब कुछ उल्टा है...
अवध के पास इमारते नही थी...लीकिन वो सबको घर देता था....
आज लखनऊ के पास इमारते है...लेकिन लोग खुले आसमान के नीचे रात गुजरते है...
अवध के पास अस्पताल नही था ...लेकिन वो सबको निरोग रखता था...
लखनऊ के पास अस्पताल है..फिर भी ऐसी ऐसी बीमारिया सामने आ रही है की पता लगाना भी मुस्किल हो गया है...
अवध के लोग शांति के लिए पूजा करने के लिए अगरबत्ती जलाते थे...
और लखनऊ के लोगो के बच्चे पटाखे जलाने के लिए अगरबती जलाते है...
है न विरोधाभाष ....
हम ये कह सकते है...की हम लोग एक कुश्ती के मैच के रेफरी है...और हमारे सामने..दो लोग लड़ रहे है।
एक नैतिकता और दूसरी आधुनिकता ...हमने अपनी नैतिकता को हर दिया है....
खैर जो भी हो....
हमे खुद को सम्हाला होगा...
आपका का सुझाव के इंतजार में मै अपनी बात यही खत्म करता हु...
नमस्कार...

Wednesday, April 7, 2010

खबर का महत्व

दोस्तों...

आज हम लोग खबर के महत्व के बारे बात करेगे... लेकिन उससे पहले हम लोग खबर के बारे में ही बात करेगे... वो भी हमारे हिंदुस्तान के खबर के बारे में...यू तो हर खबर किसी न किसी घटना से निकल कर आती है लेकिन यहाँ बात थोड़ी सी अलग है....यहाँ हर घटना के बारे में सबको पता रहता है फिर भी लोग उस घटना को दुर्घटना में तब्दील होने का इंतजार करते है....

फिर शुरू होता है घटना का महत्व ......

आज मै जैसे ही...सुबह का अख़बार लिया और हमको पता चला की हमने कल शाम को जब पूरा देश इंडियन प्रीमियम लीग के रोमांचकारी मैच का लुफ्त तालियों के साथ उठा रहा था तभी हमारे देश के जाबाज सिपाही नक्सलियों के साथ गोलियों के साथ खेलते खेलते वीर गति को प्राप्त हो गये.... और हमने देश के चौराशी वीर सपूतो को हमेशा के लिए खो दिया....

अब बात करते है इस खबर के महत्व का....

इस खबर का महत्व सबके लिए अलग अलग है.....

१- विरोधी पार्टी के लिए ये एक मुद्दा होगा.......... हो सकता है की कल को विरोधी पार्टी मनमोहन सिंह से नैतिकता के आधार पर इस्स्तिफे की मांग कर दे... मतलब की इस खबर का महत्व इन के लिए ये है की ये अपनी राजनीतिक रोटी सकने से बाज नही आयेगे....

२-सत्तारूढ़ पार्टी शायद इस बार एक बार फिर नक्सलियों को मुहतोड़ जवाब देने का स्वांग रचे....अब घटना घटित हो गयी है तो कुछ न कुछ फायदा तो निकलना ही पड़ेगा न.....?

३-अब बात करते है विद्यार्थी वर्ग की....उसके लिए ये खबर एक सामान्यज्ञान के अलावा कुछ नही है....

४-बाकि के लोग जो की मनुष्य की परिभाषा को परिभाषित करते है की मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है....उनके लिए ये खबर चाय के चुस्स्कियो का मजा बढाने का साधन है....

५-अब बात करते है....उस बाप की जिसकी आँखों के सामने उसके जवान बेटे की चिता जलेगी। बात करते है उस बहन की जो सब कुछ जानते हुए भी आने वाले हर राखी पर अपने भाई के उन्ही हाथो का इंतजार करती रहेगी जो हाथ दुश्मनों को पीछे धकेलते धकेलते कब का उस बहन के पहुच से बहुत दूर जा चूका है। बात करते है उस माँ का जिसकी गोद केवल इस लिए सूनी हो गयी क्यों की उसका बेटा भारत माँ के आँचल में लगे धब्बो को साफ कर रहा था।

उन लोगो को उस वक़्त और तकलीफ होगी जब हमारे देश के राजनेता हमेशा की तरह उन शहीदों के माध्यम से अवसरवादिता की राजनीती करेगे।

आज शुबह जब मैं अख़बार पढ़ा तो उसमे लिखा था की होम मिनिस्टर जी को इस हमले का बहुत दुःख है।

अब मै ये सोच रहा हु...की होम मिनिस्टर साहब एक आम आदमी के जैसे लाचार है ? या फिर मै खुद एक होम मिनिस्टर के जैसे सोच रहा हूँ... ? क्यों की दुःख उनको भी हो रहा है और दुःख हमको भी हो रहा है।

जवान तो अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे थे.... इसमें कोई शक नही की गलती सरकार की थी।

आपको हम बताते चले की जब हमारे देश के ये नेता सड़क पर चलते है...तब सडक एक तरफ पूरी तरह रोक दी जाती है...और उनके वाहनों के काफिलो तमाम प्रकार की तकनिकी से युक्त गाड़िया चलती है....तो इस तरह की गाड़िया इन जवानों को क्यों नही दी जाती है....?

हमको अब जागना होगा ऐसे घटनाओ के खिलाफ....

क्यों की वो naxli जो पढना लिखना भी ढंग से नही जानते है वो पुरे देश की सेना की आँखों में धुल कैसे झोक सकते है...?कही न कही माने या न माने हमारी हर सरकार ने हमे धोखा दिया है.... अब धोखा नही खायेगे....हमलोगों ही अब कुछ करना पड़ेगा... क्यों की...

"ये सियासत की तवायफ का दुपट्टा है यारो...ये किसी के आंसुओ से तर नही होता...."

Saturday, April 3, 2010

रंगों की बात......

नमस्कार मित्रो
हम लोग आज रंगों के बारे बात करेंगे.....
आप लोग यही सोच रहे होंगे की ये लू के मौसम में रंगों की बात करने क्या मतलब है...? मै तो कभी कभी ये सोचता हु की बात करने का ही क्या मतलब है....?
खैर छोड़िए हम भारतीयों की सबसे बड़ी खासियत यही है की हम हर काम शुरु करने के बाद ही उसका मतलब सोचते है....की उसका क्या फायदा होगा और क्या नुकसान ?
यही वजह है की सड़क के लिए पहले धनराशी अवमुक्त होती...है फिर किसानो को ये समझया जाता है की जो सड़क बनेगी उससे आपकी जमीन बर्बाद होगी...
अगर जमीन बचाना है तो सब लोग अपना काम छोड़ कर लखनऊ चलो...............
इस तरह जो पैसा पास होता है वो है ये तो नही पता लेकिन ये जरुर पता है की जो सड़क बनने वाली थी उसमे गढ़े और साथ ही साथ उस पर मरने वाले लोगो की संख्या रोज रोज बढती जाती है और हम अपने किसी प्रिय को खो कर किसी छुटभैया नेता को अपनी राजनीती चमकाने का मौक़ा दे देते है.....
लेकिन कभी भी ये नही सोचेंगे की इस तरह की गन्दी और काली राजनीती से हम लोग निजात कैसे पा सकते है...?
अरे हम लोग रंगों के बारे में बात करते करते ये कहा चले आये ?इस लम्बी चौड़ी बात में रंगों के बारे में बात करना तो हम लोग भूल ही गये....
अरे माफ़ कीजियेगा ....कहा भूल गये....?
हम लोगो ने काली राजनीती के बारे में तो किया तो है.....
अब चलिए हम लोग काले रंग के बारे में बात करते है.....
जरा सोचिये अगर राजनीती काली है तो खराब है.....लेकिन बाल काले है तो ठीक है.....
जब किसी को बुरी नज़र से बचाना होता है तो हम लोग उसको काला धागा पहनने को को कहते है......लेकिन
जब वही किसी शादी में जाता है तो उसको ये सुझाव दिया जाता है की बेटा शादी में काला कपडा नही पहनते...जो की वो भी उसी धागे से बना है जिस धागे को बांध कर लोग अपने आप को बुरी नज़र से बचाते है....
इन सब बातो को सोच कर तो ये लगता है की हमने अपनी सोच की आगे इन रंगों की एक न सुनी....जरा सोचिये की ये काला रंग अपनी परिभाषा लोगो को क्या बताता होगा....
वो शायद यही कहता होगा की मेरी परिभाषा में (*) नियम एवं शर्ते लागु होती है......
जैसे.... काली मिट्टी में मेरी एक अच्छी छवि है....और वही काली कमाई में बुरी.....वो ये प्रश्न भी करता होगा की....बुरी कमाई के लिए काली लिखना जरूरी है.....?
इस लिए मै काले रंग के साथ हमेशा हमदर्दी रखूँगा...क्यों की....मैंने एक बचपन में एक मुहावरा पढ़ा था...."कालिख पोतना " ये मुहावरा अभी अभी सच हुआ था.....टेनिस सनसनी सानिया मिर्ज़ा के माध्यम से....इन्होने बड़ी सफाई से समस्त भारत के कुवारों के मुह पर कालिख पोती है....
इस लिए हम इस नतीजे पर पहुचते है की.....पहले दिलवाले होना सीखिए....काला और गोरा तो हम अपने कार्यशैली से ही हो सकते है.....अपने सफलता और असफलता के बीच में बेचारे रंगों को न पीसीए....
आपकी प्रतिपुष्टि का हमे इंतजार हमेशा रहेगा.....
धन्यवाद...

Sunday, March 28, 2010

जीवन की मार

जीवन की मार को समझने के लिए सबसे जरूरी है अपने जीवन को समझना .क्यों की आज कल भेष देखकर ही भीख मिलती है...
आपका जीवन जैसा होगा वैसी ही मार आपके खाते में आएगी जैसे की अगर एक आम लड़का जो किसी ट्रेन में चैन पुल्लिंग (जंजीर खीच कर गाड़ी खड़ा करना ) के जुर्म में पुलिस से पकड़ा जाता है और उस पर गंगस्टर लगा दिया जाता है...उसके बाद उसके जीवन पर जो मार पड़ती है वो केवल वो ही जान सकता है....उसका जीवन भी उस गाड़ी के जैसे एकदम खड़ा हो जाता है....ये थी आम आदमी की मार.....
अब बात करते है खास आदमी की मार.... का।
आप सबने एक नाम सुना होगा राहुल महाजन का....अगर नही सुना होगा तो अभी आगे पढ़ लीजिये बाद में किसी से इस नाम के बारे में चर्चा कर लीजियेगा ......
ये वो सक्श है जो की भारत के जाने माने राजनीतिज्ञ स्व .प्रमोद महाजन के सुपुत्र है....साथ ही साथ की ओवल दर्जे के चरसी bhi. सबसे बड़ी बात ये है की ये एक बार विवाह के बंधन में बध के उससे फिर अपने को आजाद कर के दुबरा हिन्दुस्तानी कन्या के साथ सात फेरे लिए ....वो भी पुरे हिंदुस्तान के वोट से....
ये है खास आदमी की मार ....जो सुखद साथ साथ रंगीन भी होती है...अब बात यह फसती है की क्या अगर वो आम लड़का अपनी शादी करना चाहे तो क्या वो संभव है...?क्या जीतनी लडकियों के आवेदन राहुल महाजन के लिए हुआ था उतना आवेदन उस आम लडके लिए होगा.....?नहीं...
ये है जीवन की असली मार ....
जो हम नही चाहते हुए भी सहने को मजबूर है.....या फिर केवल चर्चा करने में हमको मजा आता है....क्या ऐसी मार हम खास लोगो को padni चाहिए?
इस बात पर आप लोग चर्चा कर के हम को सूचित कर दीजियेगा ...
अब बात करते है ऐसी मार की जो सिस्टम के कारन हम आम लोगो को सहनी पड़ती है....उस मार का असर कुछ वर्ग विशेष पर कुछ ज्यादा पड़ता है...जैसे -कोई एक २० साल का लड़का अपनी प्रेमिका की याद २४ सो घंटे खोया रहता है तभी उसके मोबाइल में मेसेज आता है ।वो खुस होता है की प्रेमिका का का सन्देश आ गया लेकिन जब मेसेज में ये लिखा होता है की रेलवे का फाटक देख कर पार करे। तो उस लड़के के दिल par kya beetega ?
कहने का मतलब ये है की जब रेलवे अपना काम नही कर पा रहा है तो लोगो को लोगो पर ही chod दिया ।
अब वो din dur नही जब पुलिस station में लिखा होगा की jeb katro से sawdhan...