Tuesday, September 29, 2015

आखिर कैसा हो गांव सरकार का आधार ?

भारत गांवों का देश है, ऐसे अगर गांव का विकास नहीं हो पा रहा है तो असल
में हम भारत का विकास करने में चूक रहे हैं , क्योकि याद रखना होगा कि
हमने जो विकास का पैमान रखा है वो सिर्फ एलईडी लाईट, फोरलेन सड़कें ,
ऊंची-ऊंची इमारतें और वाई फाई जैसी हाईफाई सुविधाओं के ही इर्द गिर्द है।
हालांकि यह विकास नहीं है यह कहना बेमानी हो जाता है लेकिन इस प्रकार का
हर विकास भारत में नहीं बल्कि इंडिया में हो रहा है । गांव के बिना हम
किसी भी शहर की कल्पना नहीं कर सकते । और गांवों की भी अपनी सरकार होती
है जिसमें ग्राम से लेकर पंचायतें तक आती है, असलियत में देखे तो इस
चुनावों में ही गांवों के भविष्य की इबारत लिखी जाती है । किसी भी गांव
के विकास के लिए यह ये स्थानीय चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाते है
क्योंकि स्थानीय स्तर के जितने भी प्रतिनिधि होते है वो अपनी गांव की
समस्या से ज्यादा वाकिफ होते हैं वनस्पत विधायक,सांसदों के..
ऐसे में गांव की सरकार का आकार कैसा हो ? मुद्दा क्या हो ?  और मुद्दों
के बीच अंतर कैसे स्पष्ट हो ? यह जानना जरूरी हो जाता है ।  अमूमन यह
देखा जाता है कि चुनाव किसी भी स्तर का हो मुद्दा एक ही प्रकार का होता
है,बिजली,पानी,सड़क,खाद,सफाई हर स्तर पर गांव वालों के बीच में एक ही
मुद्दा होता है । ऐसे में गांव वालों को यह सोचना होगा कि इस सभी
समस्याओं में पंचायत या ग्राम सभा का शेयर कितना है , और वो कौन सा
प्रत्याशी इसे दूर कर सकता है या करने का दावा कर रहा है । पंचायत के
सारे चुनाव स्थानीय मुद्दे के अलावा भावात्मक रूप से भी लड़े जाते हैं
ऐसे में भी गांवों का विकास कैसे हो , बात मीड-डे-मील कि हो, गांव में
सफाई की हो , मनरेगा स्कीम की हो या फिर आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं
के कामों की  समीक्षा हो , कुपोषण हो या शिशु मृत्यु दर हो या फिर मातृ
मृत्यु दर, सारक्षरता हो या फिर लैंगिग अनुपात का मुद्दा, किसी भी
स्वास्थ्य, शिक्षा , रोजगार हर मामले में अगर गांवों में कोई सरकारी
गतिविधि होती है तो सरकार के साथ ही साथ गांव सरकार की भी एक अहम भूमिका
होती है । और अगर गांव की सरकार अगर जरा सी संवेदनशीलता और गंभीरता
दिखाती है तो गांव का विकास होने से कोई नहीं रोक सकता है । तो इसलिए इस
गांवों के वोटरों को अब जागरूक होने की जरूरत है उनको चाहिए वो स्थानीय
स्तर के ऐसे अहम चुनाव में सिर्फ रिश्तों और भावात्मकता के आधार पर ही
वोट न करें…
अब गांव की सरकार भी विकास,विजन और एजेंडा के पैमाने पर ही बननी चाहिए
तभी गांवों का विकास हो पाएगा , क्योकि गांवों का विकास ही भारत के विकास
की कुंजी है ।

Friday, September 25, 2015

बिहार चुनाव: अबकी बार क्रिएटिव वॉर

बिहार में चुनावी संग्राम अपने चरम पर है, और यह चुनाव यकीनन सारे देश के नजर में भी है। एक तरह से हम कह सकते हैं कि यह चुनाव यह भी बताएगा कि देश में मोदी मैजिक अभी भी चल रहा है या नहीं, यह बताने की जरूरत नहीं कि लोकसभा के जनरल इलेक्शन के बाद नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति के 'बालि' बनकर उभरे । और जो इस बालि से लड़ने आता था उसका आधा बल मोदी के हर लेते थे और सामने वाला हार जाता था । लेकिन यह तभी तभी हुआ कश्मीर को छोड़कर जब मोदी सीधे-सीधे अपने विरोधियों से लड़े हैं। क्योंकि दिल्ली के मामले मोदी ने अपना चेहरा हटा लिया और पूरे देश में चल रहा मोदी का विजय रथ पर केजरीवाल ने ब्रेक लगा दिया । लेकिन बिहार विधानसभा में लोकसभा के सभी चुनावों से भिन्न है । क्योंकि मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़,राजस्थान, को छोड़ दें तो हरियाणा और झारखंड की जीत ही भारतीय जनता पार्टी को बताया कि पूरे देश में मोदी मैजिक की लहर चल रही है । लगतार जीत , बीजेपी की दिल्ली में चेहरा उतारने की चूक और फिर अब पूराने तरीके से फिर बिहार में जीत का दांव खेल रही मोदी जनता पार्टी भले ही अपने जीत के लिए आश्वस्त हो लेकिन बिहार में मोदी की पूरी टीम संशय में तो जरूर है और उसकी वजह है कि यहां के प्रैक्टिकल वोटर ।
आम तौर पर उत्तर-प्रदेश और बिहार के लोगों की राजनीतिक समझ और हिस्सेदारी बगैर किसी इंट्रेस्ट के ही और प्रदेश के लोगों की तुलना में ज्यादा होती है औऱ यही वजह है कि बीजेपी इस बार इस शो हिट कराने के लिए पूरी कोशिश में है तो वही नितीश बाबू अपने अपने द्वारा किए गए काम, बिहार की बदली हुई छवि के आधार पर लोगों के बीच में हैं । लेकिन इनसब के बीच इस इलेक्शन में कैसा हो सलेक्शन यह बताने के लिए क्रिएटिव प्रोसेस ने भी लोगों के बीच कदम रखा है । क्रिएटिव प्रोसेस का मतलब अगर हम पोस्टर से लेकर ट्विटर तक हर तरह के प्रयोग । राजनीतिक पार्टी अब इस चुनाव में लोगों दिमाग में नहीं दिल में घुसना चाह रही है । जिसमें सिर्फ मार्केंटिंग है , जनता की बातें ना के बराबर है, जिसका पोस्टर अच्छा है, जिसका ट्वीटर लगातार अपडेट हो रहा है वही ऐसे चुनाव में जीत रहा है । और इसी का नतीजा है कि नीतिश ने भी इसवक्त की लड़ाई के मूड को भांप लिया है और वो भी विरोधियों को वैसे ही हथियारों से जवाब देने के मूड में आ गए है । दिल्ली से जेटली के बयान पर 20 पेज का ट्वीटर पर जवाब दे देतें है । वो उस ऐतिहासिक पैकेज की राशि और उसके आंकड़े कितने फर्जी है यह बताने के लिए बकायदा डाक्यूमेंटेशन करके उसको फेसबुक पर शेयर करते हैं , और तो नारे और हवा बनाने के लिए उन्होंने उसी प्रशांत कुमार मोदी को हायर किया है जिन्होंने लोकसभा के दौरान नरेंद्र मोदी के नारे गढ़े थे और  उनकी ब्राडिंग की थी । इस चुनाव में प्रशांत सिटिजन फॉर एकांउटेबल गवर्नेंस के प्रमुख कार्यकर्ता के तौर पर बिहार में नीतीश के लिए हवा बनाएंगे। प्रशांत बिहार में होनेवाले चुनाव में नीतीश के पक्ष में नए नारे गढ़ेंगे और अन्य जनसंपर्क कार्यक्रम भी चलाएंगे।  उनको डेटा एनालिटिक्स, ब्रॉडिंग और कम्युनिकेशन का मास्टर कहा जाता है । खैर इस चुनाव में नीतिश जीते या फिर मोदी लेकिन चुनाव के तरीके ने यह जरूर बता दिया है कि अब डिजिटल वोटर ही आपको हरा या जीता सकता है । शायह यही वजह से इस टेक्नो फ्रेंडली हो चुनावों के इस माहौल में एक पार्टी पूरे देश में ज्यादा वोट पाने में तो तीसरे स्थान पर रहती है लेकिन सीट एक भी नहीं जीत पाती है ।
                      
लोकसभा चुनाव 2014 में बहुजन समाज पार्टी ने कुल 4.2 फिसदी वोटर शेयर के साथ करीब 2 करोड़ वोट हासिल किए थे फिर भी इस पार्टी को सीट एक भी नहीं मिली थी, बगैर वोट प्रतिशत में गिरावट के ..लेकिन सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि  इस पार्टी के वोटर, ट्विटर और पोस्टर और पब्लिसिटी के इस क्रिएटीव वॉर में कभी विश्वास नहीं रखते । ये देश भर के 2 करोड़ लोग जो अब बढ़ भी गए होंगे वो विचारधारा के वोटर हैं, विचारधारा के कार्यकर्ता हैं । लेकिन इनका प्रतिनिधि एक भी जीत पात इस क्रिएटिव वार में । अब देखना है कि इस बिहार चुनाव के इस क्रिएटिव वॉर में कौन जीतता है ? विकास, नारा, जुमला,वादा, विचाराधारा,ट्विटर,फेसबुक आखिर कौन ?





Tuesday, September 22, 2015

सनक का दारोगा पार्ट - 2

सनक का दारोगा पार्ट - 2
उस दारोगा की दबंगई ने पूरे देश को हिला दिया दिया, आम लोगों से लेकर निजामों तक सबके होश फाख्ता हो गए थे
चारों तरफ सवाल था कि अगर कानून के हाथ लंबे है तो उसे पैर चलाने की जरूरत क्यों पड़ी ?
उस सनक के दारोगा की उस चाल ले कानून को अंधे के साथ लंगड़ा कर भी दिया था ।
वो उस बूढ़ा टाइपिस्ट उस मंजर को याद भी नहीं रखना चाह रहा था लेकिन भूलना भी उसके बस की बात नहीं थी।
फिर क्या था सरकार  सकते में आई और कर सकने की स्थिति में भी पहुंच गई ।
कि जीतनी मदद हो सकेगी कि जाएगी
शहर का कलक्टर अपने साथ हिंदी और अंग्रेजी के दो टाइपराइटर लेकर बूढे टाइपिस्ट के घर पहुंचा।
टाइपिस्ट ने अंग्रेजी लौटा दी और हिन्दी टाइपराइटर अपने पास रख लिया।
वो सोचा चलों कोई बात नहीं वो दारोगा ही सनकी था बाकी सब लोग तो समझदार हैं,संवेदनशील है । मेरे साथ गलत हुआ तो क्या हुआ ?
बाद में कुछ तो सही करने का प्रयास किया गया।
बस उसकी मांग थी कि काश! सबके साथ ऐसा हो पाता।
इसी उम्मीद में उसका एक एक  दिन गुजरने लगा लेकिन सरकार तो दिन ब  दिन ऐसी पीछे पड़ी मानो उत्तम प्रदेश में सिर्फ उसकी ही सुरक्षा बहुत जरूरी है ।
साइकिल से आने वाले उस टाइपिस्ट की सुरक्षा में सरकार ने पुलिस पर ही ले- आने और ले- जाने कि जिम्मेदारी डाल दी , अब हर सुबह बाबा के घर पुलिस जीप में पहुंचती है फिर बाबा अपना टाइपराइटर लेकर जीप में बैठते है और हजरतगंज के उसी फुटपाथ पर आ जाते है, फिर दिनभर के काम के  बाद उसी नीली जीप में पीछे बैठ कर वापस घर जाते हैं
अब दिन भर का ऐसा ही चलने लगा...सुबह पुलिस की जीप में बैठना, फिर फुटपाथ पर बैठना, शाम को फिर पुलिस की जीप में बैठना और घर चलने आना।
हा लेकिन वक्त चाहे जितना भी बदल गया हो टाइपिस्ट बाबा के नसीब से फुटपाथ नहीं जा सका। भले ही सरकार ने इतना बड़ा बीड़ा उठा लिया हो
धीरे-धीरे बाबा को महसूस हुआ कि उसका इस्तेमाल हो रहा है फिर बाबा एक दिन बाबा ने सोचा कि क्यों न सरकार के साथ भी वैसा ही कुछ किया जाए जैसा कि सरकार ने उसके साथ किया ।
फिर क्या सरकार के रवैये से आजीज आ चुके बाबा ने भी ठीक वैसे ही सरकार के टाइपराइटर को लात मार दी जैसे उस दिन बाबा के टाइपराइटर को उस सनक के दारोगा ने मारी थी ।
फिर बाबा आजाद, पुलिस चली गई , जीप भी चली गई, बाबा अब अपनी साइकिल पर अपना टाइपराइटर लादता है और उसी फुटपाथ फिर से बैठता है। वही फुटपाथ जो सरकार भी उसके नसीब से नहीं छिन सकी जिसने और देने का डिंडौरा पूरा पीट दिया था

Tuesday, August 18, 2015

बिहार मालामाल या फिर weekly ?

बिहार मालामाल या फिर weekly ?
जी हाँ
आज बिहार में सौगातों की आकाशवाणी हुई। आकाशवाणी होते ही बिहार में लगा की दीवाली आज ही मन गयी। हम तो कन्फ्यूज हो गए की करोड़ ज्यादा होता है या लाख , जहाँ तक मेरा गणित बताता है वो ये है कि करोड़ ज्यादा होता फिर दिमाग में एक सवाल आया की अगर करोड़ ज्यादा होता है तो फिर लाख को करोड़ से पहले क्यों लाया गया । लेकिन फिर दिमाग की बत्ती जली और पता चला की अगर करोड़ से पहले लाख आ जाये तो मामला और बड़ा हो जाता है।
और वही हुआ आज, जैसे ही बादशाह ने अपना पिटारा खोला मनो की आरा में अशर्फियों की बारिश होने लगी
और लोग निजाम के जय घोष में जुट गए
सब सुखी हो गए ,सब संपन्न हो गए आखिर जनता को क्या चाहिए इसके अलावा लेकिन जनता अब जानना चाहती है की वो अब मालामाल है या फिर Weekly?
सवाल जायज है और पूछा जाना चाहिए लेकिन जवाब भी आना चाहिए
आखिर जनता के बीच में सौगात देने का यह सलीका कितना सही है, क्या पी एम सच में जनता का उत्साह देख कर ही पैकेज की राशि बढ़ाते रहे?
क्या अब देश की जनता को ज्यादा से ज्यादा वाजिब हक़ पाने के लिए अपने निजाम के सामने जरूरत की नुमाइश शोर,हल्ला,जयकारे के रूप में करनी होगी?
और अगर नुमाइश देख कर पी एम को मजा नहीं आया तो क्या फिर हक़ का पैसा नहीं मिलेगा
फिर क्या हमको सड़क,बिजली,अस्पताल नहीं मिलेगा
तो क्या ये भी मान लिया जाये की जनता अब जनार्दन न हो कर सर्कस का जोकर गयी है की अपना करतब दिखाओ और बक्शीस में विकास ले जाओ?
जो भी बिहार में आज कई सौ लाख करोड़ की बात हो रही है।
दावा किया जा रहा है की आज तक जो बिहार हुआ है अब उससे ज्यादा अच्छा होगा
खैर जो भी हो बिहार ने अब अपनी हार को टालने के लिए वाजपेयी के भाजपाईयों ने अपनी ताकत झोंक दी है
लेकिन आज के इस एलान ने सवाल यही खड़ा किया है की अब बिहार मालामाल है या weekly?

Thursday, August 13, 2015

प्रधानमंत्री जी आपको पता है..?

आदरणीय
नरेंद्र मोदी जी
प्रधानमंत्री (भारत सरकार )
आपको प्रधानमंत्री भारत सरकार कहें या सिर्फ प्रधानमंत्री भारत, क्योंकि सरकार में प्रधानमंत्री के अलावा भी कई मंत्री आते हैं जिनको कैबिनेट कहा जाता है लेकिन विपक्ष की हठधर्मीता और आपकी हर मामले पर चुप्पी ने बार बार जनता को यही संदेश दिया है कि आप अकेले ही प्रधानमंत्री भारत सरकार है बाकी किसी को किसी से कोई मतलब नहीं ।
मुद्दा किसी का भी हो सबको जवाब  आपका ही चाहिए । और आप जवाब दे नहीं दे रहे हैं क्याहो जाता जब आप जवाब दे देंते तो, जब बाप बेटे के सरकार के बाप की आप गतिरोध समाप्त करने की कोशिश में तारीफ कर सकतें हैं। और जब आपकी सरकार लैंडबिल पर आधा दर्जन संसोधन करके उसे यूपीए सरकार की तरह बना सकती हैं । तो आखिर आप इन मुद्दों पर जवाब क्यो नहीं देने आए ।
अगर आपकी सरकार ने सदन चलाने की पूरी कोशिश कि तो एक आखिरी कोशिश आप ने क्यों नहीं कि ये है मेरा जवाब अगर फिर भी कांग्रेस सदन नहीं चलते देती तो आप इस अगस्त में जितना चाहे उतना मार्च करते । कोई कुछ नहीं कहता कम से कम मै तो नहीं ही कहता ।
सर जी,
बताया जा रहा है कि इस बार सत्र नहीं चलने से करीब जनता के 270 करोड़ रूपए बर्बाद हो गए । क्या आपकी चुप्पी ,आपकी गैर मौजूदगी देश के आम लोगों के 270 करोड़ रूपए से भी कीमती थी । आखिर हम आपके उस गैस सब्सिडी छोड़ने वाले विज्ञापन पर किस तरह से अमल करें । हमें इन पांच सालों में यही डर लगा रहेगा कि आपके कहने पर हमने अपनी सब्सिडी छोड़ी और वो पैसे संसद के हंगामे की भेट चढ़ जाए।
आखिर आपकी चुप्पी को हम जैसे लोग  क्या समझे..? क्या वही समझे जब मनमोहन सिंह ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा था कि हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी,न जाने कितने सवालों के आबरू बचा रखी है ।
आप तो देश से लेकर प्रदेश और तो और परदेश में भी बोलने के लिए जाने जाते है ,यह भी मानना होगा कि आपके संबोधन में वो शक्ति है जो लोगों के प्रभावित करती है लोग आपको ध्यान से सुनते है ,आपके बोलने की कला के देख कर ही हमको कम्यूनिकेशन में फीडबैक के महत्व का पता चला कि कैसे आप अपने भाषण में लोगों से बीच बीच में पूछते रहे और लोग आपको जवाब भी देते है । लेकिन आखिर क्या वजह है कि हर जगह बोलने वाला वो व्यक्ति उस मंदिर में अब नहीं बोल रहा है जहां वो बोलते वक्त फफक पड़ा था । वो पल भी याद भी है जनता को जब आपने सदन की सीढियों पर अपना माथा रख दिया था । लेकिन जब देश आपको सदन में सुनना चाहता था तो आखिर आप क्यों नहीं बोलने आए ।
आप जब ट्वीट करके सुंदर पिचाई को बधाई दे सकतें है तो आप ट्वीट करके कांग्रेसियों को जवाब क्यों नहीं दे रहे थे  ।

आपको पता नहीं पता होगा कि नहीं होगा....यहां आपके उपर हर बयान पर लोग लतीफे बना रहे है, फेसबुक ,ट्वीटर और न जाने कहा कहां आपके बारे में क्या क्या बोला जा रहा है लेकिन पता आप चुप हैं । जाने क्यों ?
उम्मीद है कि आप भविष्य में चुप नहीं रहेंगे ,जैसे  आप बिहार में बोलते है जैसे आप उत्तर प्रदेश में बोलेंगे ठीक वैसे ही संसद में भी बोलेंगे।
देश को आपसे बहुत उम्मीदें हैं । देश दिल में पूर्णबहुमत की महत्ता बनाई रखिए...नहीं तो जनता पूर्ण बहुमत से डरने लगेगी ।

धन्यावद
आपका
मनीष यादव

Tuesday, August 11, 2015

कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा....?

कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा....?
जब से इस सवाल को मैंने स्टे्टस में डाला है तब से दिमाग में ये घूम रहा है
बात सिर्फ अब कटप्पा की नहीं रही है , बात उन सभी लतीफों की जो हमारे अगल बगल रोजाना बनते रहते है ।
किसी मुद्दे पर राहुल गांधी पर चुटकुला बन जाना,विराट कोहली का आउट होना तो अनुष्का शर्मा पर जोक्स बन जाना,मोदी के भाषण पर मसखरी से लेकर कर केजरीवाल,अन्नाहजारे, अच्छेदिन,बिगबॉस पर रोजाना नए ट्रेंड के चुटकुले हमारे बीच आते है ।
सबसे अच्छी बात तो यह कि अभी तक बिरयानी ही वेज और नॉनवेज मिलती थी लेकिन कैटगरी वाइज हम लोगों ने जोक्स को भी वेज और नॉनवेज में बांट दिया है।
जिसकों हम छुपाते तो पूरा है लेकिन दोस्तों के बीच में ठहाके भी खूब लगाते है तो कभी चुपके से दफ्तर में,बस स्टैंड,चाय की दुकान पर पढ़ कर मन ही मन मुस्करा लेते है।
लेकिन इस सबके बीच अब लतीफों का संसार आगे निकल चुका है वो अब संता-बंता और रजनीकांत के बीच ही नहीं रहा
अब लतीफा किसी का भी बन सकता है सुबह गिरफ्तार हुए नावेद नाम के आंतकी पर आपको शाम तक दो दर्जन लतीफे मिल जाएंगे।
विराट कोहली के जीरो रन पर आउट होने पर आपको चंद मिनट में व्यग्यात्मक रूप से कोहली के आउट होने की बीस वजह ह्वाट्सएप पर मिल जाएगी
भारत-पाकिस्तान का सीज फायर उल्लंघन हो या फिर अमरिकी राष्ट्रपति का भारत दौरा या फिर भारत के प्रधानमंत्री का फ्लाइट मोड में रहना हो
ये सारी बाते सिर्फ इस वर्जुअल लतीफा अनलिमीडेट कंपनी से निकले है जिसका 100 फीसदी शेयर सिर्फ जनता के पास है यह पता नहीं कि ये इंडस्ट्री नो प्रोफीट नो लॉस पर काम करती है या फिर खुलकर हंस लेना और खिल्ली उड़ाने मात्र को ही यह शुद्ध मुनाफा मानते है ।
आखिर ये जोक्स कहां बनते होंगे...फिर वो कहां से कहां होते होते आप तक पहुंचते होंगे और फिर भी आपका कोई दोस्त कहता होगा कि अरे ये वाला बहुत पुराना है ।
लेकिन अब सोचिए इस इंडस्ट्री के रिच पर जिस पर ये भी लिखा होता है कि जल्दी से फॉरवर्ड करों मार्केट में नया है ।
लेकिन एक बता तो तय है कि लतीफा सिर्फ लतीफा ही नहीं रहता है उसमें भी मेंटल एनर्जी लगानी पड़ती है क्योकि जो सवाल 250 करोड़ की फिल्म बनाने वाले निर्देशक ने नहीं सोचा वो सवाल किसी एक मसखरे ने सोचा और पूछ भी लिया कि आखिर कटप्पा ने बाहुबली को क्यो मारा...?