Monday, December 9, 2013

सूरज डूबेगा तो अँधेरा होगा ही ..........

नमस्कार मित्रों
किसी पार्टी का इतना स्प्ष्ट ही नही बल्कि प्रचंड बहुमत का पाना आखिर क्या सन्देश देता है  ? जिससे पूंछो वो यही कह रहा है कि खुद बी जे पी को इसकी उम्मीद नही थी और ये बात सही भी है । कल शाम तक किसी भी राजनतिक पंडित के पास ऐसी कोई भी थियरी नही थी जो कि इस जनादेश को परिभाषित कर सके।  जनता सरकार  से नाराज होती है ये तो होता है , लेकिन जनता विपक्ष से भी नाराज होती है ये मैंने पहली बार देखा है. वैसे एक बात ये भी है कि ये जनता का फैसला भी सरकार के ही खिलाफ है , जो केंद्र में है।  इसीलिए हार हत्तोसाहित गहलोत ने कह दिया कि ये परिणाम केंद्र के गलत नीतियों के कारण आया है। वही शाम को मिडिया मुखातिब होते वक़्त सोनिया जी कहाँ कि विधान सभा का चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते है। रही बात मध्य प्रदेश कॉंग्रेस कि तो हर नेता ने अपनी प्रतिकिया में चाटुकारिता कि परिपाटी को चुनाव आयोग कि गाइड लाइंस कि तरह फॉलो किया है , खैर जो भी हो चुनाव से पहले कि निराशा भी  इस कॉंग्रेस कि हार का एक कारण बना है , निराशावादी स्टेटमेंट ही इस स्टेट में कॉंग्रेस को पीछे ले गया। कॉंग्रेस के पास एक राहुल थे और राहुल के पास एक लाइन थी कि हम दिल्ली से पैसा देते है , वो भूल गए कि जनता  इस जनरल नॉलेज में कोई रूचि नही रखती , राहुल आदिवासियों कि सभाओ में अपनी दादी , पापा कि बाते करते थे वो भूल गए कि वो चुनावी जन सभा थी कि कोई एल्युमिनी मीट नही कि आप भूली बिसरी यादों  को ताज़ा कर थे , खैर जो भी हो अब बात स्क्रिप्टेड ऐंकर से हटा कर लाइव परफ़ोर्मेर कि करते है , जैसे दिग्विजय सिंह कि वो अपने कारनामों से खुद को पुरे मध्यप्रदेश में एक्टिव साबित करते रहे चाहे वो बुर्का का खुलासा हो या आरोप - पत्र जारी  करने कि बात , उन्होंने एक तरफ खुद को इस चुनाव में शामिल भी किया और भविष्य के परिणामों के पूर्वाग्रहों से चिंतित होते हुए खुद को डूबता सूरज भी बताते रहे और जनसभाओं में पब्लिकलि दूसरी पंक्ति का नेता बनते रहे, जिससे जी अब वो किसी के भी सवालों के घेरे में नही है , रही बात डूबता हुआ सूरज कि तो बगैर उम्मीदवारो के घोषणा से पहले ही अपने बेटें का नामांकन करा देना, और मतों के इस अकाल में भी बेटे को भारी मतों से जीता देना ही उनकी प्रतिष्ठा बताने के लिए काफी है। लेकिन अब सुरेश पचोरी और सिंधिया जैसे लोगो का जो राजनितिक मटियामेट हुआ है वो वाकई इस लोगों के लिए चिंताजनक है. वो भूल गए कि जनसभाओं में धूपी चश्मे ने पहने जाते , सिर्फ कुर्ते कि बाहें ऊपर चढ़ा लेने से आप आम या किसान होने का स्वाँग नही रच सकते , आप धूप में बैठी जनता के सामने किसी के भाषण के दौरान आप फाइल से मुह नही धक् सकते, आप राजा है आप सैनिकों के सहारे सीधे युद्ध के मैदान में जीत सकते है न कि गुप्त होने वालें मतदान में।  भीड़ कि प्रकृति आपको समर्पित तो लगेगी लेकिन वो आपके लिए समर्थित भी है। ये जरुरी नही है क्यों कि मतदान के कोई कन्यादान नही है जो कि सबके सामने हो ये गोपनीय होता है इसलिए कॉंग्रेस को नेताओ को जन नेता बनाने के लिए सबसे पहले जन बनना होगा।         


















Saturday, December 7, 2013

हल्कें नही है ये सारें तहलकें ........


मित्रों नमस्कार ....
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आज कल कुछ दिनों से समाचार चैनलों पर यौन उत्पीड़न और बलात्कार की ही खबरो कि उपस्थिति ज्यादा हो गयी है    , अगर आप आम लोग है मतलब कि घर में एक कि टी वी है  कि तो किसी भी टी वी के दुकान पर जाईये और हर टी वी पर अलग समाचार चैनल लगा कर करीब तीस मिनट देखिये, आपको हर चैनल पर अलग अलग लोगों द्वारा किये गए  यौन उत्पीड़न कि खबर दिख जाएँगी।
खैर खबर है तो दिखेगी ही ....लेकिन तेजपाल के मामले के बाद हर उत्पीड़न और बलात्कार के खबर को इलेक्ट्रानिक मिडिया ने एक नया स्लग दे दिया है वो है "तहलका "
जैसे - एमपीसीए में तहलका , निफ्ट में तहलका , डी आर डी इ में तहलका इ टी सी  इ टी सी ......

ये बात अलग है कि अभी हर रेपिस्ट को तरुण तेजपाल नही कहा जा रहा है।
आलम ये हो गया है कि मैंने प्रभात गर्ग के संस्थान के नाम को कन्फर्म करने के लिए उसका नाम मैंने गूगल पर डाला तो चौथे नम्बर के ही रिजल्ट में उसका जिक्र था , मेरे गुरु जी कहते थे कि अगर तुमको अपनी इस दुनिया में  औकात पता करनी हो तो अपना नाम गूगल पर डालो और  सर्च करो ...तब पता चलेगा कि तुम इस दुनिया के किस पायदान पर खड़े हो.
खैर जो भी हो अब सच में मुद्दे पर आते है ...

मैंने ऊपर " हल्कें नही है ये सारें तहलकें " इसलिए लिखा की एक बात ध्यान देनी हो कि आसाराम के बाद अर्थात तरुण तेजपाल के बाद से जितने भी मुद्दे आये है उस पर बस ऊपरी ऊपरी बहस ही होती आ रही है , कहने का मतलब ये है कि जो सवाल आसाराम और निर्भया कांड के बाद मिडिया में उठाये गए थे कि जैसे लोगो कि सामाजिक मनोवृत्ति कैसी हो गयी है ? लोग इतने उत्तेजित और वहशी कैसे हो गए ? और तो और कितने चैनल निजी बस और निजी ऑटो कर के उसका नाट्यरूपांतरण तक कर दिए थे , ठीक आसाराम के मामले में हाकिम रहमानी और हाकिम उस्मानी जैसे लोग भी टी वी पर आकर ये बताने लगे कि कोई आदमी किस उम्र तक सेक्स कर सकता है ?
लेकिन ये सो काल्ड क्रिएटिविटी अभी तक किसी भी चैनल ने तेजपाल के मामले के बाद भी , और उसके  लगातार हो रहे मामले के बाद भी नही उठा रहे कि आखिर कौन - कौन सा मामला कार्य क्षेत्र पर उत्पीड़न का बनता है , और बातों  महिलाये कैसे सजग रहे ? और जागरूक रहे ? इस सब मामलों से ....
महिला आयोग बस इसी में परेशान है कि किसने पीड़िता का नाम बता दिया ? और किसने क्या बयान दे दिया ?
रही बात अपने देश कि पुलिस कि तो जब साधू को पकड़ने में इनको ५ ८ दिन लग सकते है तो पेशेवर मुजरिम को ये ऐसे पकड़ लेते होंगे जैसे कि कि मैंने बी जे एम सी के सेकेण्ड सेमेस्टर का सेकेण्ड टॉपर हो गया था मलतब कि संयोग से ....
लेकिन पत्रकारिता से जुड़े लोगों को चाहिये कि इन तहलकों के मामलों में तह तक जाये और लोगो को जागरूक करे कि इसके कौन से पहलू है ? कौन सा आचरण इस दायरे में आता है और कौन सा नहीं। …
वर्ना जानकारी के अभाव में लोग सच में फारुख अब्दुल्ला कि तरह डरने लगेंगे ....
नतीजा ये भी हो सकता है की महिलाये भी अपने कार्यस्थल पर इस प्रकार के बढ़ते मामलों से और जानकारी के अभाव में बाकि लोगो द्वारा उपेक्षा कि न शिकार हो जाये ……