किसी के बारे में लिखना बहुत ही मुश्किल काम है, समझ नही आता के क्या लिखें और क्या नहीं I आज जब कहा गया के लिखना है तो बड़ी कठिन समस्या उत्पन्न हो गयी...लिखें तो लिखें क्या, पर लिखना तो है ही I चलिए फ़िर लिख ही डालें कुछ I हमारे साथ पड़ती है एक लडकी, जिसका नाम है नेहा रंजन...सावला रंग, काली आँखें I क्लास में सबसे अलग...सादगी से भरा रूप , बस अपने काम से मतलब रखती है बाकी दुनिया जहाँ से कोई मतलब नही I अपने ख़ास दोस्तों के साथ रहना बहुत पसंद है उसे...पर क्लास में सभी को बहुत अच्छी लगती है और स्वभाव से भी काफी शांत है I
सभी से अच्चा व्यवहार है उसका, और कोई भी ऐसा नही जो उसके लिए कुछ बुरा बोले I एक मुस्कराहट हमेशा उसके चेहरे पर झलकती रहती है , वो ना ही सिर्फ शांत स्वभाव की है बल्कि दिल की भी उतनी ही साफ़ है...आज हर तरफ हमरं बस स्वार्थी लोग ही नज़र आते हैं वही उसके भोलेपन और सचाई को देखकर थोडा अजीब सा लगता है I हर तरफ आधुनिकता का एक दौर स्व चल चूका है जहाँ दुसरो को खुद से छोटा समझना और अजीबो- गरीब फ़ैशिओनब्ले कपड़े पहना आज की जरूरत बन चुकी है पर इसको देखकर ऐसा लगता है जैसे आज भी सादगी मायने रखती है I ना बोलने चलने में कोई लाग लपट ना ही पहनने ओढने में, ऐसा लगता है मानो सादा जीवन उच्च विचार का अनुसरण कर रही हो I
ज़िन्दगी को अपनी शर्तों पर जीने के बहुत ज्यादा हिम्मत की जरूरत होती है, और ये हिम्मत उसमे नज़र आती है I दुनिया के बनावटी कायदे-कानून से बच कर रह पाना थोडा मुश्किल हो जाता है पर अगर कोई ऐसा ऐसा मिल जाये तो ख़ुशी होती है I एक तरफ जहाँ हम आधुनिकता के नाम पर कोई भी चीज़ बिना सोचे समझे अपना लेते हैं, ऐसे लोगों के लिए ये एक सटीक उदाहरण है I किसी भी बात को आधुनिकता के नाम पर गले लगा लें कोई शान की बात नही, जिसका पता हमें तब चलता है जब बहुत देर हो चुकी होती है I भारतीय मूल्यों के साथ रहकर भी खुद को मोडर्न बनाया जा सकता है, सिर्फ कह देने भर से के हम भी भारतीय मूल्यों को समझते हैं , खुद में काफ़ी नही होता I
जबतक खुद में ये बात ना सनझ ली जाये के ज़िन्दगी सिर्फ फैशन तक ही सिमित नही तो बेहतर होता है, ज़िन्दगी का क्या भरोसा जाने कब खत्म हो जाये I हमें नेहा की जो बात सबसे अच्छी लगती है वो है उसका कम और सटीक बोलना मानो उसने एक बात गांठ बांध ली हो, वो बात है:
"अति का भला ना बोलना, अति की भली ना चुप"
जब वो किसी भी बात को बड़े ही सरल शब्दों में कहती है तो सामने वाले को उसकी बात समझ भी आती है सुनने में अच्छी लगती है, पर उसके साथ एक समस्या है...खुद में थोड़ी उलझी रहती है इन जाने किस बात से घबराती है! खैर इतनी सारी बातें जो हमने कही उससे बस एक बात बताना चाहते थे, आज आधुनिकता के नाम पर हम अपने जीवन मूल्यों से जो खिलवाड़ कर रहे हैं हमें उनका मोल समझना होगा होगा ये बाते मै अपनी तरफ से नही कह रहा हु बल्कि यह उसके जीवन शैली का सारांश है और जहाँ तक बात है आगे बढने की तो ज़िन्दगी अपनी शर्तों पर जी जाती है...किसी और के नही उसकी हर बात हमको यही सीखती है
तो क्यों न हम उसके जीवन शैली से सिख लेते हुए खुद को खुद्दार और आत्मनिर्भर बनाये....
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hmm.......nice
ReplyDeleteक्यों न हम उसके जीवन शैली से सिख लेते हुए खुद को खुद्दार और आत्मनिर्भर बनाये....
ReplyDeleteमनीष बाबू आपका जो निष्कर्ष है वो ऊपर के कथ्य से मेल नहीं खा रहा सिर्फ सादगी से खुद्दारी और अतं निभरता की बात को और स्पष्ट करना था