नमस्कार मित्रो...
मै अपनी अनुपस्तिथि की बिना कोई वजह बताते हुए.....आप लोगो से माफ़ी मांगता हूँ !
आज हम लोग बात करेंगे..नवाबो और तहजीब के शहर लखनऊ की....और ये जानने की कोशिश करेंगे की "ये कहाँ आ गये हम यु ही साथ चलते चलते ....."
जी हां .....जैसे जैसे वक़्त का पहिया घूमता रहा...वैसे वैसे कल का अवध आज का लखनऊ बन कर सामने खड़ा है....
जहाँ कल इक्के के घोड़े के खुर की ट्प ट्प की आवाज गुजती थी...वही आज फ्र्राटे भरती गाड़ियाँ पीछे से निकल जाती है और आवाज तक नही होती...
लेकिन शोर पहले से भी ज्यादा है...
आखिर इस शोर की वजह क्या है...?
सुनने में तो ये विरोधाभाषी पंक्तियाँ लगती है..लेकिन वक़्त के साथ साथ इस विरोधाभाष की स्वीकारना ही पड़ेगा...
पहले के अवध में केवल लोग रहते थे...न ही एक दुसरे में पतंग के धागे जैसी उलझी सड़के थी...और न ही आकाश को भेदने वाली इमारते॥
थी तो सिर्फ अदब,सादगी,और शांति। था तो सिर्फ सुकून ...जो की आज किसी किसी के पास नही है॥
आज बगल में क्या हो रहा है...किसी को पता नही...लेकिन बिग बॉस में क्या हो रहा है...वो मेसेज के इन्बोक्स में लिखा होता है....
है न विरोधाभास ...
कहते है की आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है....लेकिन यहाँ सब कुछ उल्टा है...
अवध के पास इमारते नही थी...लीकिन वो सबको घर देता था....
आज लखनऊ के पास इमारते है...लेकिन लोग खुले आसमान के नीचे रात गुजरते है...
अवध के पास अस्पताल नही था ...लेकिन वो सबको निरोग रखता था...
लखनऊ के पास अस्पताल है..फिर भी ऐसी ऐसी बीमारिया सामने आ रही है की पता लगाना भी मुस्किल हो गया है...
अवध के लोग शांति के लिए पूजा करने के लिए अगरबत्ती जलाते थे...
और लखनऊ के लोगो के बच्चे पटाखे जलाने के लिए अगरबती जलाते है...
है न विरोधाभाष ....
हम ये कह सकते है...की हम लोग एक कुश्ती के मैच के रेफरी है...और हमारे सामने..दो लोग लड़ रहे है।
एक नैतिकता और दूसरी आधुनिकता ...हमने अपनी नैतिकता को हर दिया है....
खैर जो भी हो....
हमे खुद को सम्हाला होगा...
आपका का सुझाव के इंतजार में मै अपनी बात यही खत्म करता हु...
नमस्कार...
बहुत बढ़िया मनीष जबरदस्त लिखा है ऐसे ही लिखते रहो सुन्दर पोस्ट बधाई
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट | धन्यवाद|
ReplyDeleteयह लेखनी कैसी कि जिसकी बिक गयी है आज स्याही !
ReplyDeleteयह कलम कैसी कि जो देती दलालों की गवाही !
पद-पैसों का लोभ छोड़ो , कर्तव्यों से गाँठ जोड़ो ,
पत्रकारों, तुम उठो , देश जगाता है तुम्हें !
तूफानों को आज कह दो , खून देकर सत्य लिख दो ,
पत्रकारों , तुम उठो , देश बुलाता है तुम्हें !
" जयराम विप्लव "
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इस नए और सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteशानदार प्रयास बधाई और शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteएक विचार : चाहे कोई माने या न माने, लेकिन हमारे विचार हर अच्छे और बुरे, प्रिय और अप्रिय के प्राथमिक कारण हैं!
-लेखक (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश') : समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान- (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जिसमें 05 अक्टूबर, 2010 तक, 4542 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता राजस्थान के सभी जिलों एवं दिल्ली सहित देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे), मो. नं. 098285-02666.
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