आरक्षण फिल्म पर बहस पुरे देश में जारी है की आरक्षण सही है या गलत ?
आखिर जरूरत क्यों हुई आरक्षण की? क्या जिस उद्देश्य को ले कर आरक्षण लाया गया था वो पूरा हो पाया...?
अगर बात केवल फिल्मो की करे तो इस तरह हो हल्ला मचाना बहुत ही हास्यास्पद लगता है . जिस प्रकार दलितों तथाकथित मसीहा या प्रतिनिधि पि.डी कैमरा और संगन की सुनहरी और दुधिया लाइट में दलितों की बात करते है तथा अपने अपने बयानों की वजह से दलितों और पिछडो को खुद अपने ही मुह से ये याद दिलाते है की इस समाज उनकी क्या औकात है...?
अभी एक समाचार चैनल में पी. एल. पुनिया ने इस फिल्म का एक संवाद बताया की जिसमे कहा गया है की दलितों के कपड़ो से बदबू आती है और वो बहुत गंदे होते है इस्सलिये सवर्णों के लडके उनके साथ नही पढाई करेंगे...
मतलब की फिल्म से पहले ही उन्होने द्तिलो की स्थिति अपने मुह से बता दि. लेकिन यह नही सोचा की जो दशा फिल्म में दर्शायी जा रही है वो सही है या गलत...?
अगर गलत है तो निश्चय ही उस दृश्य को हटा देना चाहिए. लेकिन अगर सही है तो वो खुद अनुसूचित जाति जनजाति के अध्यक्ष है तो दलितों की यह स्थिति कब सुधरेगी?
रही बात आरक्षण की तो हमारी सरकार ने दलितों के लिए केवल दो चीजे ही आरक्षित की है...
१ - एक रेडियम का बना हुआ बोर्ड जो की रात में भी साफ साफ पढ़ा जा सके जिस पर की लिखा होता दलित बस्ती ...क्यों की दलित बस्ती में बिजली तो आती ही नही ...
२ - और एक सरकारी शराब देशी शराब की दुकान जिससे की वो दलित जिनता मजदूरी कर के कमाते है उतना शाम को थकन मिटने के नाम पर जमा कर आते है...
लेकिन किसी सरकार ने दलितों के लिए एक अच्छा स्कूल, अच्छा अस्पताल आरक्षित नही किया....
लेकिन जब दलित समाज और पिछड़ा समाज प्रथमिक रूप से ही शिक्षित और स्वस्थ्य नही रहेगा तो फिर उसको आप उच्चतर शिक्षाओ में २७ % तो क्या १००% भी आरक्षण दे दे तो भी कोई प्रभाव नही पड़ता..
नेताओ ने मांग की इस फिल्मो की कुछ दृश्यों को को कट दिया जाये और तब फिल्म दिखाई जाये....
मतलब की आज तक हम रियल्टी शो के नाम पर किसी को ट्यूब लाइट तोड़ते देखते आये तो किसी नेता नही कुछ नही किया लेकिन जब आज किसी ने सच मुच में जब रियलटी दिखने की कोशिस की तो इनको तकलीफ होने लगी....
आखिर इस तकलीफ की क्या वजह है?
जहा तक आरक्षण की बात है तो आज भारत में केवल जातिगत आरक्षण ही नही है...
आरक्षण के और भी रूप है...जैसे की. एन सी सी , स्पोर्ट, केन्द्रीय मंत्रीका कोटा, स्वत्न्र्ता सेनानी , भूत पूर्व सैनिक और हर संस्थान के कर्मचारी का एक अलग कोटा होता है..
तो अगर विकलांग कोटे को छोड़ कर देखा जाये तो बाकि सब कोटे ऐसे लगते है की एक उपहार के तौर पर दिए गये है ...
और फिल्म में भी आरक्षण को कैस्रत ही कहा गया है...जो की अभी एक था कथी अगड़े समाज द्वारा कहा जाता है ...तो जब इस उपहार को दलितों ने अपना अधिकार समझ लिया तो क्या बुरा किया?
आखिर समाज की रचना करते वक़्त या फिर समाज को ब्राम्हण , क्षत्रिय ,वैश्य और शुद्र में बाटते वक़्त किसने उनको अधिकार दिया ने निर्धारित करने का की फलां ये कम करेगे और फलां ये काम....
हमारे ही समाज बुद्धजीवियो द्वारा यह खिची हुई लाइन है...
रही बात दुसरे पक्ष यह भी नही नकारा जा सकता की दोनों तरफ से कुछ अपात्र लोग भी सुविधा के पात्र हो जा रहे है और पात्र लोग नही....
लेकिन जिस स्थिति की कल्पना कर के आरक्षण का प्रावधान किया गया था वो आज भी साकार नही हुआ है...सिर्फ और सिर्फ हमारी सरकारों के कारण
देश के जितने भी दलित आगे है वो या तो नेता है या नेता के रिश्तेदार . बाकि दलितों को न तो शिक्षा मिली न रोजगार....
मिलातो सिर्फ एक सस्ते गल्ले की सरकारी दुकान जिसका ठेका भी नेताओ के चाटुकारों को मिलता है...
और मिला तो भारत सेकर की तरफ से उनके बच्चो को मिड -डे- मिल में घटिया खिचड़ी ..
और जब चुनाव आया तो उस दलित बस्ती में पहुचा दिया पेटी का पेटी देशी शराब...
फिर ले लिया वोट और छोड़ दिया सबको उसकी में मरने क लिए कभी डेंगू से कभी मलेरिया....तो कभी बाढ़ से
दलितों को न तो शिक्षा दि गयी और न तो उनको समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास किया गया....
उनको हमेशा उस स्थान पर रखा गया है जिससे की उनका सही रूप से भावात्मक इस्तेमाल किया जा सके .....
मै अपने उत्तर प्रदेश का उदाहरण दूंगा आपको ...बहुजन समाज पार्टी जो की दलितों की बहुत मसीहा मानी जाती है लेकिन फीर भी उत्तर प्रदेश में दलित आगे क्यों नही है?
उसका कारण सिर्फ और सिर्फ यही है की मायावती ने दलितों को भावत्मक रूप से धोका दिया है...
महात्मा बुद्ध और अम्बेडकर जी जैसे म्हापुरुसो के नाम पर उन भोले भाले दलितों को धोका दिया है...
अगर मायावती जी दलितों की शुभचिंतक है तो क्यों आपने सवर्णों को तिक्त दिया और दलितों का वोट लिया....?
क्यों नही दलितों को ही टिकट दिया ...?
सो दलित .पिछड़ा ,आरक्षण पर बहस कभी भी एयर कंडीसन में नही हो सकती जरूरी है की हमको इसके लिए सतही तौर पर विचारना होगा....
और फिल्मो पर रोक लगाना और ये निशी करना की जनता को क्या दिखाना है और क्या नही यह बहुत ही निंदनीय है.....
स्वंत्रतता भी हमको नही मिली होती अगर हमने पत्रकारिता का सहारा नही लिया होता....
आप सबको हमारी तरफ से स्वंत्रतता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाये....
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