अभी मै कुछ दिन पूर्व पूर्वांचल गया हुआ था जिसके दौरान मैंने कई जिलो और उन जिलो के कई गांवो में भी गया था..हाला की मै भी पूर्वांचल का ही रहने वाला हु..गाजीपुर जिले के उतराव का..
लेकिन पता नही क्यों मै अपने गाव को देख कर ये नही सोच पाया जो इन गांवो को देख कर सोच रहा हु...इसका मतलब ये नही है की मेरा गांव बहुत हाई प्रोफ़ाईल है.
मित्रो जब मै इन गांवो में घूमता था तो मुझे निजी कंपनियों के प्रबन्धन पर बहुत ताज्जुब हुआ और मेरे मन में ये सवाल उठा की अगर सरकार भी निजी कंपनियों की हो जाये तो बात बन सकती है ...
बात बनने से मेरा मतलब ये है की सरकार चाहे जिसकी हो और वो जनहित में चाहे कितनी भी योजनाये चला रही हो..वो योजनाये हमारे गांवो तक पूछ ही नही पा रही है...लेकिन अगर बीच में कोई सत्ता दल के नेता उस गांव में पहुच गया तो रातो रात सब योजनाये लागु हो जाती है ...लेकीन नेता जी भी की क्या गलती वो तो रोज ही पहुच जाये पर कमबख्त चुनाव ही पांच सालो में एक बार आता है
और जब चुनाव आता है तो नेता जी पहुचते है और योजना चालू हो जाती है...अभी कुछ दिन पूर्व मैंने देखा की एक गांव में मुख्यमंत्री का दौरा था और इस दौरे को सकुशल निपटने के लिए उस गांव का जीर्णोद्वार यूद्ध स्तर पर जारी था..और काम देख कर हमको टी वी पर आने वाला एक सीमेंट का विज्ञापन याद आ गया जिसमे की सब कुछ बहुत तेजी से बनता हुआ दिखाया जा रहा है ...
खैर छोडिये इन बातो को....मै बात कर रहा था की निजी कंपनियों की प्रबन्धन की ....
जरा सोचिये की वो गांव जहा पर अभी तक बाल श्रम कानून नही पहुचा है वह पर एच डी ऍफ़ सी का चाइल्ड इन्सुरेंस प्लान पहुच चूका है. अब जरा सोचिये की जब गांव के लोगो को ये नही पता की छोटे बच्चो को काम करना अपराध है और इसके लिए सरकार ने कानून भी बनाया है..इस प्रकार के मानसिक स्थिति के लोगो पर निजी कंपनियों ने कितना विश्वास जताया है और अपना विज्ञापन न केवल भेजा है बल्कि उसे उसी वक़्त लागु भी किया है...
कहा जाता है की भारत गांवो का देश है और मैंने जो गांव देखा उसमे भारत सरकार का एक भी सर्वजनिक पी सी ओ नही था लेकिन टाटा डो को मो की सेवा थी और वो भी उस्सी दिन शुरू की गयी थी जिस दिन वो सेवा महानगरो में शुरू की गयी थी ...मतलब की निजी कंपनियों ने हमारी सरकार की तरह गांवो के साथ किसी प्रकार का भेद भाव नही किया ...
हमने गांव में कोई सरकारी हैण्डपम्प देखा लिकिन बिसलरी का बोतल जरुर देखी ...
हमे उन गांवो में कोई ऐसा अस्पताल नही देखा जहा की अल्ट्रा साउंड, सी टी स्कैन जैसी सुविधा उपलब्ध हो लेकिन हर एक या दों किलोमीटर पर महा ठंडी बियर की दुकान जरुर देखा...
और जब मै इन बातो होटल पहुच कर सोच रहा था तब संयोग से टी वी चल रही थी और उस पर विज्ञापन चल रहा था वो भी भारत सरकार की हिंदुस्तान जाग रहा है...
अब मै ये सोचने लगा की १५ अगस्त १९४७ के बाद अब जाग रहा हमारा हिंदुस्तान ...ये है हमारा सरकारी प्रबन्धन जो की आधा अधुरा लागु होने में भी ६२ -६३ वर्ष का समय लग गया और दूसरी तरफ हमारे देश की निजी कंपनिया जो योजनाये तत्काल लागु कर देती है इन गांवो के लिए ..
अब मैंने तो सोच लिया जरा आप भी सरकार से निजी कंपनियों के प्रबन्धन की तुलना कीजिये...और बताईये की सर्व श्रेठ कौन है ?
achcha katksh...mitra
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