होली का त्यौहार है....कल मै भी इस रंगीन पर्व में शामिल होने के लिए उत्तेर प्रदेश परिवहन की सेवा ले कर अपने गृह जनपद गाजीपुर आ गया हु ....
हर तरफ रंग बरसे टाइप के गाने सुनने को मिल रहे है...कल जब मैंने ये गाना बस में सुना तो एका एक मेरे मन ये सवाल पैदा हुआ की क्या इस बार रंग बरसना जरूरी है जब की इतना कुछ पहले से ही बरस चूका है...
अब आप सोच रहे होगे की मै क्या बरसने की बात कर रहा हु....
मेरे कहने का मतलब है की मायावती द्वारा विपक्ष पर लाठिया बरस चुकी है अभी अपना दल का विरोध बाकि है देखते है की सोने लाल पटेल के सोने के बाद अपना दल कैसे लोगो को अपना बनाती है? वैसे एक बात की इन लाठियों को भी राजनितिक दल एक हथियार बना रही है ....
ठीक इसी तरह प्रणव दा ने रंगों की जगह सांसद निधि बरसा दी .अब हमारे माननीय लोग पहले वाला ही नही खर्च कर पा रहे है तो बाकि जो बढ़ा है उसको कैसे खर्च करेगे ?ये तो वही जान सकते है ....
बरसने के इसी क्रम में हशन अली
को जमानत दे कर उसपर रहम बरसा दी ...आशीष नेहरा ने ने अपनी कबिलियत से हमारे देश पर हार बरसा दिया ...
और एन डी टी वी ने ३ करोड़ की शादी बरसा दी है
और ऐ राजा की बरसात ने तो सबको गिला कर दिया है...
कुदरत ने भी जापान पर कहर बरसा दिया ..हाला की जापान के साथ साथ हम लोगो की हमदर्दी है ....
सो मेरी तरफ से ये नही लगता की अब इस होली में रंग बरसना जरूरी है....
आपको क्या लगता है....?
हा हा बढ़िया व्यंग्य
ReplyDeletebahut khooob badhiya
ReplyDeleteabe maine pehle hi kaha hai ki tumhare jaise likhne walon ki kami hai jo halke phulke shabdon me apni saari baat keh de.....aap achcha likhte hain.
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